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संवाद

sanvad

बिभूति आनंद

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और अधिकबिभूति आनंद

    हम जनैत रही

    सूगा अहाँक पोस नहि मानत

    एक दिन पिजड़ा तोड़ि

    बहरा जायत

    हम जनैत रही

    अहाँक ड्योढ़ी

    श्मशान भऽ जायत एकदिन

    पोसुआ कुकुर सभ

    सेहो पोस नहि मानत

    हम जनैत रही

    अहाँक बोल

    ककरो माथपर नहि नचतै

    बोल एकदिन

    मेमिआय लागत

    अहाँ

    विकलांग भऽ जायब

    किछु नहि कऽ पायब

    हम जनैत रही

    अहीँक धरतीपर

    अहीँक विरुद्ध

    एकदिन आरम्भ होयत

    अन्तहीन

    ठमकल युद्ध

    अहाँक सोलह कला

    साबित होयत

    रणचंडीक मूर्ति

    अथवा

    गरजैत मेघ

    कियेक तँ हम

    देखैत रही

    कियेक तँ हम

    गमैत रही

    ने अहीँक घर मे

    ड्योढ़ी लग

    बाधमे/बोनमे

    कलमे/पुरजामे

    एकटा विचित्र सन

    अद्भुत जागल सन

    एकटा नियोजित

    आबा पजरि रहल छै

    हम जनैत रही

    किछु लोक

    एकटा नैतिक अनुबन्धपर

    हस्ताक्षरकऽ रहल छै

    हम देखैत रही—

    एकटा विशाल जन-समुद्र

    राजमार्गपर उमड़ि रहल छै

    हम जनैत रही...

    स्रोत :
    • पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : बिभूति आनन्द
    • प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
    • संस्करण : 1984

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