Font by Mehr Nastaliq Web

संताल परगना का अमरगान

santalaparagna ka amargan

आनंद बहादुर

अन्य

अन्य

आनंद बहादुर

संताल परगना का अमरगान

आनंद बहादुर

और अधिकआनंद बहादुर

    बिरसा,

    मैं सुबह-सुबह सानकर लोइयाँ बनाता हूँ

    और धूप तापकर लिट्टियाँ पकाता हूँ 

    मुझे बारूद खाता देखकर

    काठ हुआ जाता है मेरा बाप

    मेरी माँ के थनों में दूध सूख जाता है

    और मेरी बहन कर चेहरा

    भुने हुए कंद की तरह लाल हो उठता है 

    मेरे थाने का सिपाही 

    मुझे धूप सेंकता देखता है

    तो उल्टा लटकाकर

    मेरी आँत के अंदर 

    छुरी की तरह उतार देता है 

    अपना डंडा

    मेरे क़स्बे का हवलदार 

    वह बारूद ढ़ूँढ़ रहा है

    जो मैंने अपनी बिसुखी हुई गायों

    और मरियल भेड़ों की

    टाँगों के बीच से दूहा है 

    अपना रेवड़ लेकर मैं 

    पहाड़ के नीचे जाता हूँ

    और दुहता हूँ बारूद 

    मगर पहाड़ पर उगता हुआ सूरज

    उसे पी जाता है

    और मेरे अंदर 

    एक धमाका होता है

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद बहादुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY