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कृष्ण-स्तुति

krishn istuti

के. एल. व्यासराय शास्त्री

और अधिकके. एल. व्यासराय शास्त्री

    घट-पट आदि कटु वचनों के जाल में बार-बार नाचते हुए,

    'डे-ङसिङस्' (व्याकरण की विभक्तियाँ) आदि वचनों के झमेले से उन्मत्त होते

    हुए तथा कौए की तरह ज़ोर-ज़ोर से कर्कश ध्वनि में रटते हुए मैं, हे अच्युत,

    आपके दोनों चरण-कमलों को भूल गया।

    ग्वालों के घरों में मथनी, जड़ शरीर होने पर भी, अपना लाभ

    सम्पादित करके प्रशंसनीय बनती है, क्योंकि उसे भगवान् ने दूध-दही के

    बरतनों को तोड़ने के लिए स्वयं अपने हाथ से उठाया था।

    विभक्ति-ज्ञान से रहित मैं क्रिया जानता हूँ और कर्म ही जानता

    हूँ, फिर कर्ता को कैसे जान सकता हूँ!

    हे कृष्ण, तुम स्वयं मेरे सामने आकर अपनी कृपा मुझ पर दिखाओ।

    काला बादल याचक के प्रयास को जाने बिना भी स्वयमेव वर्षा

    करता है।

    गाढ़े अँधेरे से ढके मेरे हृदय को देखकर, हे भगवन् , यदि तुम मेरी

    उपेक्षा कर रहे हो तो उससे मेरी कोई हानि नहीं होगी, किंतु हे कृष्ण,

    तुम्हारी संसार में जो सर्वव्यापिनी कीर्ति है, वह क्षीण हो जाएगी।

    यह कामदेव आपका पुत्र है, ऐसा मन में सोचकर मैंने विनयपूर्वक उसे

    हृदय में स्थापित किया और उसका बड़ा सम्मान किया, किंतु वह मेरे सारे

    गुण-समूह को बलपूर्वक बाहर निकालकर स्वयं राज्य करने लगा और उसने

    मुझे अपना आज्ञाकारी सेवक बना लिया।

    पुराण-समुदाय कहते हैं कि आप क्षीरसागर के बीच शयन करते हैं,

    किंतु कहाँ है वह क्षीरसमुद्र और कहाँ हैं दया के समुद्र आप! संसार-समुद्र

    में डूबा मैं कुछ नहीं जानता।

    अच्युत नाम से पुकारे जाने वाले आपको मैं जान गया हूँ। आपका

    यह नाम सार्थक हो गया है, क्योंकि मेरे ज़ोर-ज़ोर से पुकारने पर भी आप

    अपने स्थान से ज़रा भी नहीं हुए।

    आपकी कौमोदकी गदा रोगकारिणी है, यह समझकर मेरा हृदय

    भयभीत था, किंतु वही संसार की पीड़ा को दूर करके आनंद देती हुई

    ‘कौमोदकी’ (पृथ्वी को आनंदित करने वाली) नाम सार्थक कर रही है।

    लक्ष्मीपति (विष्णु) के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, इसलिए मैं

    लक्ष्मी-संपन्नों (धनिकों) के चरणों में प्रणाम कर बैठा। इस तरह मुझ नचैये

    से यह भूल हो गई। हे कृपासिंधु, हे नाथ, उसे आप दया करके क्षमा कर दें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 547)
    • रचनाकार : के. एल. व्यासराय शास्त्री
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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