संरचना

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मोना गुलाटी

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मोना गुलाटी

और अधिकमोना गुलाटी

    समय विदूषक की आकृति बनाकर मेरे निकट ठहर गया है

    और तुम्हारे हाथों से आवाज़ आनी बंद हो गई है। अब

    जीवित रहने के दो ही अर्थ हैं :

    फड़फड़ाना या बदबू देना।

    वीर्य और परिवार के कूबड़ को ढोना मात्र पुसंत्वहीनता

    है : एक द्वंद्वात्मक स्थिति में ख़ुद को मात देना मात्र

    टुच्चापन है।

    तुम्हारा शातिर बौना अहम्

    विजयोल्लास में सीत्कार

    फैल जाता है।

    पुसंत्व और बलात्कार का यथार्थ मानना मात्र संस्कारी

    कुवृत्ति और मक्कारी है। नैतिक!

    दीवारों, बसों और रेस्तराओं में ‘वह’ ज़रूरत के मुताबिक़ होता है

    आदिम या नंगा!

    ‘वह’ को मैं या तुम में परिवर्तित कर देने से केवल संदर्भ और

    स्थितियाँ बदल सकती हैं

    अधिक से अधिक

    कोई दरवाज़ा बंद हो सकता है या खुल सकता है।

    बार-बार एक परेशानी कबूतर की भाँति गुटकती है

    मेरी पसलियों के भीतर

    चरमरा कर निकलने वाली बेसुरी ख़ौफ़नाक़ आवाज़ जो

    हमेशा करती है ग़लती पहचानने में लिंग, समाज :

    मुझे कोई ग़लतफ़हमी नहीं

    कि तुम्हें या मुझे हवा को गोल करने का

    या ख़ाल से चिपका पाप उतार देने का

    या एक लंबी सुरंग को तिलस्म में बदल देने का

    मंत्र आता है।

    तुम्हारा अस्तित्व एक सपाट पट्टा है।

    वह केले या सेब का है

    या उल्लू का, इसका निश्चय करने के लिए तुम्हें कुछ घंटों की

    मोहल्लत हमेशा मिली है और तुमने हमेशा

    आख़िरी ‘की’ को दबा कर सोचा है कोई नया षड्यंत्र!

    शहर की ठंडी सड़क पर इतिहास खोदता है एक अध्याय। नर-हत्या

    के प्रपंचों को नकेल में बाँधने के लिए

    एक पीढ़ी

    एक दूसरी पीढ़ी

    एक तीसरी पीढ़ी

    एक चौथी पीढ़ी

    एक पाँचवीं पीढ़ी के

    घोंसले में हाथ डाल कर निकाल लेती है एक अस्त्र, एक मिट्टी

    का लोंदा और एक झिल्ली

    श्वेत और काली!

    स्रोत :
    • पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : मोना गुलाटी

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