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समतल

samtal

आनंद बहादुर

अन्य

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और अधिकआनंद बहादुर

    समतल 

    ज़्यादा दिन समतल नहीं रहता

    धीरे-धीरे एक पर्वत उग आता है 

    मेरे पास भी एक समतल है

    जिसके नीचे

    कोई पर्वत मुझे छू रहा है

    और मुझे अंदर से से ढकेल रहा है 

    मेरे ऊपर अभी एक फरीछ आसमान है

    जिसे पता है कि पर्वत मेरे भीतर उगेगा

    अवश्य उगेगा

    उगेगा ही उगेगा 

    मगर मैं जानता हूँ कि पर्वत उगा

    तो कोई सरिता ज़रूर फूटेगी 

    सरिता फूटेगी तो आकाश,

    कभी लाल 

    कभी नीला 

    कभी भूरा 

    रंग उसमें घोलेगा 

    और फिर सरिता मुझे

    बूँद-बूँद रंगों में बाँट कर

    उपत्यकाओं में फेंक आएगी

    ऐसा वह तब तक करती रहेगी

    जब तक मैं 

    फिर से 

    समतल नहीं हो जाता

    फरीछ आसमान : हमारी लोकभाषा (मगही) में सुबह का नवजात आसमान यानी सूरज उगने से ठीक पहले या पानी बरसने के तुरंत बाद का खुला हुआ आसमान।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद बहादुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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