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समष्टि

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राधावल्लभ त्रिपाठी

अन्य

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और अधिकराधावल्लभ त्रिपाठी

    कितनी-कितनी लहरें

    गलबाँहीं कर टकराईं

    कितने भँवर घूम गए

    कितने विवर्त बने

    इन सबकी समष्टि में

    कभी शायद बन सका

    बुलबुला एक।

    बुलबुले का जीवन ही कितना

    लहर से लहर

    आवर्त से आवर्त

    विवर्त से विवर्त।

    इन सबके मिलने से

    वह बन सकता है,

    नहीं भी बन सकता है

    बन भी जाए तो एक क्षण ठहरता है बस

    इन सबके बीच

    फिर फूट कर विलीन हो जाता है।

    कदाचित् कभी ऐसा भी हो जाता है

    कि एक क्षण के लिए टिक गए बुलबुले को

    पलक की झपक के बराबर समय के लिए

    सूरज अपनी किरणों से छू भर देता है

    तब आधे क्षण के लिए बुलबुले के भीतर रच जाता है

    सतरंगी आभा वाला इंद्रधनुष।

    काल का अजस्र यह जो महानद है बह रहा

    इसमें पता नहीं किन संयोगों से

    बना और एक क्षण टिका

    बुलबुला हूँ मैं

    मुझे जन्म देने के लिए

    कितने बादल बरसे

    कितनी धाराएँ बहीं

    बुलबुले की औक़ात क्या?

    एक क्षण का उसका जीवन

    पर एक क्षण मेरे टिके रहने पर

    देवता ऊपर मुस्काते हैं प्रसन्न होकर

    उनकी मुस्कान की सतरंगी आभाओं में

    स्पंदित होता है मेरे भीतर

    एक क्षण का और जीवन

    कई कल्पों की आयु से बड़ा एक क्षण।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राधावल्लभ त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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