समन्वय

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अनंत पटनायक

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    बुगेन बिला के पास

    आज खिले है रे लाजवती लता के फूल

    कैसे लाल आलोक से पृथ्वी है आत्महारा!

    फूलों की बहार! झड़ाओ आग की चिनगारियाँ।

    पथ के प्रांत से होता है पथ प्रारंभ

    मैगनोलिया को देखकर हँसती है मल्लिका,

    अश्रु की लहरो में है शुचि-शुभ्र रेखा

    घास के केशों मे कौन माँग निकाल रही है?

    जो घास के केशों में माँग निकालने बैठी है

    सूर्य को चूर्ण कर सुख का सिंदूर करती है,

    चंद्र को दल कर, रच कर प्रीति कर्पूर

    अमृत राग लेपती है विषाक्त वक्ष में!

    बुगेन बिला के पास

    खिली है वह अख्यात रूप-कथा

    रोष ईर्ष्या से छोड़ो आग की चिनगारियाँ

    वही अपनी रस-रजित व्यथा।

    बुगेन विला के पास

    झड़ गया है आज रे लाल गुलाबों का दल,

    भस्म राशि से उठता है मन्मथ

    रति के क्रंदन से कंपित वसंत।

    बुगेन बिला में वायोला बज उठता है।

    आम्र-मुकुल से मिल जाती है वहाँ किस बेहेला की कथा

    एक तान से यह क्या है प्रीति अर्चना

    अतीन के शत अभिसंपात पर नव अभिज्ञा-छाया?

    ऊपर पृथ्वी नीचे आकाश इसलिए

    वैपरीत्य में यह क्या 'हार्मनी' जाग रही है।

    गुलाब गंध बुगेन बिला के पास से

    लाल लाजवती प्रीति परिभाषा माँगती है।

    फूलों का सागर उत्ताल हुआ क्या

    अरे निर्बोध! छोड़ो आग की चिनगारियाँ

    स्मृति-सिकता की पीत पाडुर माया

    फूल ऊर्मि के किस नृत्य के समान है!

    जाती है आज, जाती है जरा-जर्जर रात्रि

    बुगेन बिला के पास

    यह उठा रे लाल गुलाब का झंझावात,

    हृदय के ऊपर हो जाता भग्न हृदय,

    आँखें खोलती है लाजवती लता की कोटि कलियाँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 45)
    • रचनाकार : अनंत पटनायक
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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