सलेटी धुआँ

saleti dhuan

सरबजीत गरचा

सरबजीत गरचा

सलेटी धुआँ

सरबजीत गरचा

और अधिकसरबजीत गरचा

    मेरे दादा जी 30 नंबर ब्राॅन्ड की बीड़ी पिया करते थे

    पर कहते उसे एक नंबरी थे

    बीड़ी के बंडल पर एक तस्वीर छपी होती थी

    जिसमें एक जवान मर्द का दमकता चेहरा होता था

    बेदाग़ माथा

    सिर के बाल पीछे काढ़े हुए

    पैनी निगाह

    और ज़बरदस्त अंदाज़

    ये सब 30 नंबर बीड़ी से ही मिलेगा

    गोया यही उस तस्वीर का आदमी

    अपने बंद होंठों से कहता था

    हालाँकि उसके चेहरे की आकृति के इर्द-गिर्द

    धुएँ का नामो-निशान नहीं दिखता था

    मुझे शक होता था कि वह

    सचमुच बीड़ी पीता भी है या नहीं

    ईंट की छोटी-सी दीवार को ही

    बेंच बनाकर उस पर बैठा एक छैल-छबीला

    गर्दन को थोड़ा टेढ़ा करके

    बीती हुई शाम और धीरे-धीरे आती हुई

    रात की ट्यूबलाइट वाली रोशनी में

    अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से

    बीड़ी पीते बुज़ुर्ग और

    उसके पोते-पोतियों की रेलपेल को

    घंटों देखने-सुनने की क़ाबिलियत रखता था

    रबर के खिलौनों को

    ऊबने की सहूलियत जो नहीं होती

    वह दबाने पर आवाज़ करने वाला गुड्डा था

    पर उसकी दीवार की बुनियाद में लगी सीटी

    ख़राब हो चुकी थी

    दादाजी उसी सीटी के रास्ते

    गुड्डे के शरीर में

    अपने मुँह से बीड़ी का सलेटी धुआँ

    भर दिया करते और

    खिलौने को ब्लो हॉर्न की तरह दबा-दबाकर

    पूरे कमरे में उस धुएँ की पिचकारियाँ छोड़ते

    कहीं आस-पास ही रखे बीड़ी के बंडल पर

    छपी तस्वीर का आदमी भी

    अब अपने ही कारख़ाने में

    सूखे पत्ते में लपेटे गए तंबाकू के

    धुएँ से अनछुआ नहीं रह पाता था

    और अब तक मैं भी अनछुआ नहीं रह पाया

    नींद के सन्नाटे से जगाकर

    मुझे सपनों की चहल-पहल में ठेलती

    दादा की माचिस की तीली से

    आती आवाज़ से

    और एक तीली रोशनी से

    जो दिल के बहुत पास वाली

    किसी दूर की दुनिया को

    जगमगाती है

    स्रोत :
    • रचनाकार : सरबजीत गरचा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए