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सदा घूमता मेरा मन

sada ghumta mera man

ज़ुल्फ़िया इसरोइलोवा

अन्य

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ज़ुल्फ़िया इसरोइलोवा

सदा घूमता मेरा मन

ज़ुल्फ़िया इसरोइलोवा

और अधिकज़ुल्फ़िया इसरोइलोवा

    मैं घूमी हूँ धरती सागर अंबर पर

    ली उड़ान नगरों गाँवों लोगों देशों पर

    मेरे नीचे फैली यह गुदड़ी-सी धरती

    भूल-भुलैयाँ जैसी

    कितने ही बंदरगाह गेह

    कितनी विचार-धाराएँ महती इच्छाएँ

    चाहे मैं घूमूँ कहीं सदा संग रहते मेरे

    प्यार गीत औ’ सपने

    इस धरती की भाँति निरंतर रही घूमती

    निद्रा में भी मैंने सफ़र रखा है जारी

    मेरी शैया एक पोत है

    नई सुबह चमकीली जिस पर

    आएगी निश्चय ही

    समय भागता है तेज़ी से तो भगने दो

    इसे रोकने का हमको अधिकार नहीं है

    यह दुनिया और रस्ते इसके मुझे खींचते

    जैसे कशिश ज़मीं की

    जो कुछ भी मैं लिखती

    सब में भरी हुई हलचल जीवन की

    कभी रुकने वाली गति में

    सदा घूमता है मेरा मन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 210)
    • रचनाकार : ज़ुल्फ़िया इसरोइलोवा
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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