सबसे कामुक क्षण
sabse kamuk kshan
वो मेरा दुःख है
ठँड की सुबह पश्चिम की खिड़की की तरह
वो लाजवाब है सुरम्य स्थलों पर प्रेमिकाओं का नाम लिखता हुआ
दृश्यों को देखता हुआ वो ऐसा ही है
जैसे साँस की तकलीफ़ों से मरता हुआ आदमी रोज़ी की बात करता हो
उसकी बेबसी है समुद्र की तरफ़ खुलने वाला दरवाज़ा
उसके पास सब मज़ेदार चीज़ें हैं मसलन तृष्णाएँ,
लालसाएँ, हम्माम, बादल और हरम वाली हसीनाएँ
मगर उसे ख़ुशी के अवसाद का डर है
वह अब सबसे कामुक क्षण की खोज में है
कि तभी एक पुराना पत्र रद्दी के ढेर से उसके हाथ लगता है
जिसमें लिखा होता है,
मैं तुम्हारी उपस्थिति इस नकली मौसम और उधार के सूरज के साथ
सूद समेत महसूस करना चाहता हूँ
तिरस्कृत प्रेमिका का जो उत्तर तार में था
वो इस तरह लिखा था—
“हुक निकले कलेजे की मैं थी तुम्हारे जीवन में एक प्रेम विराम
हम और तुम किसी अनजान भाषा के अख़बार की तरह कभी नहीं पढ़े जा सकेंगे
ख़बरों की यह गुमशुदगी जिस तारीख़ महसूस की जा सकेगी
वही वार केवल सबसे कामुक होगा!
- रचनाकार : प्रेमा झा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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