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सब तराज़ू फैसला

sab tarazu phaisla

मान्या श्रीवास्तव

अन्य

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मान्या श्रीवास्तव

सब तराज़ू फैसला

मान्या श्रीवास्तव

और अधिकमान्या श्रीवास्तव

    जो टूटा ये मटका सब्र का ये सालों पुराने महल कहीं वह ना जाएँ,

    ये जो खुदगर्ज़ी की हवा खुले आम चलती है तुम्हारे शहर में, कहीं थम ना जाए,

    जिन अरमानों का जनाज़ा निकलने पर तुम जश्न मनाते हो,

    जिनके क़ायदा बता कर तुम बेधड़क सिखाते हो,

    ये जश्न, ये क़ायदे, वापस तुम पर वार ना कर दें,

    कहीं ख़ुद की हार का मातम मनाने के लिए,

    तुम्हारे महल, हवा और तमाम ऐश-ओ आराम तुम्हारे पास ही ना बचे।

    कहीं पछताना ना पड़े।

    इल्म है तुम्हें इस चिनगरी का, जो धड़क रही है कई दिलों में?

    जानते हो कितने हैं, जो तुम्हारे जिस्म को नहीं, रूह को चोट पहुँचाना चाहते हैं।

    ठीक जैसे तुमने किया था।

    वक्त है। संभल जाओ।

    ख़्वाहिशों की मैय्यतों पे, दावते सजाने के रिवाज,

    या मार्थों पे बंदूक लगा कर हसाने की रिवायत,

    तानाशाहों को किसी ने जगह नहीं दी।

    ना दिल में, ना साहित्य में, ना इतिहास में।

    पढ़े हैं क़सीदे औरंगज़ेब के कारनामों के?

    या नेपोलियन के क़ायदे क़ायम हो इस ज़मीन के किसी कोने में।

    जर्मनी की सरहदों में अब नहीं लिया जाता हिटलर का नाम, खुले आम।

    एक शाम तुम्हारी बेड़ियों से जकडे, किसी के नाज़ुक हाँथ क़लम को डुबाएँगे स्याही मैं,

    और लिख देंगे क़िस्मत तुम्हारी काली स्याही से।

    एक शायर के अंदर का इंक़लाब स्याही में उतर कर,

    पैदा करेगा एक ऐसा चक्रवात जो तुम्हारी पुश्तों को नस्ल ओ-नबूत कर देगा।

    और नहीं खले पाओगे तुम अपना दाँव आवाम की मासूमियत पर,

    क्यूंकि मार चुका होगा उनके अंदर कर एहसास.

    वाक़िफ़ कराया होगा उन्हें तुम्ही ने अपने अंदर के हैवान से,

    लाल रंग बिखेरा होगा, तुम्ही ने जंग के मैदान में।

    जिसके जवाब मैं अब, सफ़ेद की उम्मीद करना बेवकूफ़ी होगी।

    तुम पर सबसे पहला वार होगा कविताओं का,

    जो आवाज़ बनेगी मज़लूम की, और तुम्हारी बेड़ियों भी।

    तैख़ानों मैं बंद क़ैदी छेड़ेंगे पहली लड़ाई, और पहुँचाएंगे तुम्हें कटघरे तक।

    इल्म है तुम्हें इस बात का, की तुम्हें किस तराजू मैं तौला जाएगा,

    जब तुम महफ़िल छोड़कर जाओगे, तब तुम्हें किस कलम की किस स्याही से लिखा जाएगा,

    और अगर यूँ ही चलता रहा, तो तुम किसी कलम और स्याही के क़ाबिल बचोगे भी या नहीं।

    कोई लेखक अपनी क़लम की स्याही तुम पर ख़र्चेगा भी या नहीं?

    इतिहास में तुम्हें जगह देगा?

    अरमान होंगे तुम्हारे भी!

    कुछ तो सोचा होगा, की तुम्हें कैसे लिखा जाएगा।

    जब किसी लेखक की क़लम और तुम्हारी तलवार टकराएगी,

    किसी एक की मौत आएगी।

    कहीं तुम्हारे अरमानों का जनाज़ा निकालने पर जश्न ना मनाया जाए,

    ठीक जैसे तुमने किया था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मान्या श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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