देवी मैया
देवी मैया!
दऽ सकै छी तँ दिय जवाब
होइ छै कियै
सब दिन
खाली मौगिये डाइन
आ मनसा भगता?
देवी मैया!
अहीँ सन मौगी
समेटै छै अपनामे
सिर्जनाक बून्द
आ, सिरजै छै
मनसो आ मौगियो,
देवी मैया!
दऽ सकै छी तँ दिय जवाब
मौगिये सन अहाँ
पूजल जाइ छी
आ अहीँ सन मौगीकेँ
कहल जाइ छै कियै डाइन?
पिआयल जाइ छै गूँह-मूत,
देल जाइ छै
वर्वर सामूहिक हत्याक दण्ड
आ बेर-बेर दैत रहैत अछि
सलामी,
रखैत अछि साक्षी
अहीँक, मनसा।
देवी मैया!
अहाँकेँ याद अछि
नचबैत तरुआरि
आ बरका-बरका मोंछबला
मुण्डमाल पहिरने अपन चित्र।
देवी मैया!
की अहाँकेँ बूझल अइ
मनसा, अहाँक ओ चित्र
रखने अछि जोगाकऽ
मुदा जीवन बिना,
आ बन्न कऽ देने अछि
एकटा कोठरीमे वा गहबरमे
बना कऽ काठ-पाथर
आ माटिक थुम्हा।
देवी मैया!
कि अहाँकेँ लगैये नीक
सालमे एक बेर पुजाइत
आ भरि साल
दण्ड भोगैत रहब मौगी होबऽकेँ
बेटी-पत्नी आ मायक रुपमे।
देवी मैया!
कहि सकै छी तँ कहू
एकटा मौगीक रुपमे
कहियो रहि सकैत छी अहाँ
स्वतन्त्र?
देवी मैया!
धूप, धुम्मन आ गुगुलक
आँखि-कान आ नाकमे घुसियाइत
तिक्ख धूँआँक बीच
मूड़ी झँटैत
करताल भँजैत
भगता सबकेँ मन्तरसँ
मनसायल
मरनी आ मलेछिया
कहियाधरि ढोइत रहत
मौगी होबाक पीडा?
मुदा, देवी मैया!
बूझल अछि हमरा
मायक रुपमे
आ शक्तिक रुपमे
स्थापित कऽ कऽ
कऽ लेने अछि कैद
अहाँकेँ,
आ कऽ लेने अछि कब्जा
अहाँक सभ शक्ति।
आ बूझल अछि इहो
मौगी,
होयत नहि जाधरि लैस
ज्ञान आ संघर्षक हथियारसँ
ने तँ अपने स्वतन्त्र होयत
ने अहाँ।
- पुस्तक : समय गीत (पृष्ठ 65)
- रचनाकार : रोशन जनकपुरी
- प्रकाशन : मैथिली विकास कोष, जनकपुर
- संस्करण : 2013
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