इसी बहाने कुछ नया होगा

isi bahane kuch naya hoga

ज्याेति शोभा

ज्याेति शोभा

इसी बहाने कुछ नया होगा

ज्याेति शोभा

और अधिकज्याेति शोभा

    क्योंकि और किसी से नहीं कह सकती

    तुमसे कहती हूँ

    पड़ोस में कपड़ों की अलसाई गंध

    और कमरे में फैली है किसी बंदरगाह की बासी छुअन

    छूटूँगी इनसे तो आऊँगी

    चौरंगी की उसी दूकान में

    जहाँ दर्पण ही दर्पण हैं, बिंब ही बिंब

    संसार मात्र प्रतिबिंब

    संकलित रचनाओं के पीछे खड़ा पुस्तकालय बूढ़ा होता जाता है

    पुरानी हो चुकी महामारी में नई पीड़ाओं जैसे उठती है

    घर लौटने की, केश गूँथने की, चिलम भरने की हूक

    घृणा फीकी होती है मैले पड़े पलंग से

    और अपराध होते भी हैं तो इतने छोटे जिनसे अंतर नहीं पड़ता साँसों की लय में

    पानी गिरता है तो कीच हो जाता है

    गल्प गिरती है तो चरित्रहीन

    सब जंजाल के साधन जुटाए हैं जीवन ने

    छूटूँगी तो आऊँगी

    शीत में ठिठुरते मायापुर के भोग में

    दो गज़ कपड़ा फाड़ कर झंडा बनाने वाले

    और तिरपाल से साहित्य का मंच बनाने वाले संसार से छूट कर आऊँगी

    इसी बहाने कुछ नया होगा नगर की गोष्ठी में

    युद्ध टाला जाएगा अगले सत्र के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्योति शोभा
    • प्रकाशन : समालोचन

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