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रंग मंच

rang manch

मान्या श्रीवास्तव

अन्य

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और अधिकमान्या श्रीवास्तव

    ज़िंदगी एक रंग मंच है

    यहीं आना होता है, यहीं से जाना होता है।

    अब तो जाते हैं मंच पर, लेकिन सिर्फ़ खड़े तो नहीं रह सकते

    कुछ करके के भी दिखाना होता है

    तो माँ-बापू, मैडम और रिश्तेदार नामक पुराने कलाकारी से सीखना शुरू करते हैं।

    उनका काम सब शुरुआत से बताना-सीखना समझाना होता है।

    बीतते हैं कुछ दिन यूँ ही, और हमे कुछ किरदार ख़ासा पसंद आने लगते हैं

    किसी को स्टेथोस्कोप, पेंचकस, कलम तो किसी को बल्ले और घुँगरू भाने लगते हैं।

    फिर लग जाते हैं इन्ही किरदारों के पीछे,

    इन्हें पाने में ख़ून पसीना बहाना होता है।

    इन्ही कोशिश करने और कामयाबी के बीच कुछ दोस्तों का भी बन जाना होता है।

    अब समय तो लगता है शिखर पर पहुँचने में पर मन और दिल नहीं लगता।

    यहाँ दिल लगाने के लिए, दिल लगाना होता है।

    अब किताबों मैं कहाँ, कभी ख़्वाबों में, कभी गलियों में आना-जाना होता है।

    साथ समय बिताना होता है,

    पहले तो अंक सिर्फ़ डगमगाते हैं पर फिर फेल हो जाना होता है।

    पापा के अंदर का जासूस भी जाग उठता है,

    दिन भर फ़ोन पर, किताब नहीं उठाता, बेवक्त बेवजह रहता है मुस्कुराता।

    थोड़ा समय लगता है, पर व्योमकेश बख़्शी नमक कलाकार के स्टूडेंट थे पापा भी,

    आख़िरकार पकड़ा जाना होता है।

    पर इश्क परवान चढ़ चुका होता है,

    चाटे खाए जाते हैं,

    वादे क़समों की बातें होती है, अरे भागना अगाना होता है।

    स्टेशन पर ही पकड़े जाते हैं,

    जूतों से आरती और हॉकी स्टिक से प्यार के भूत का उतरवाना होता है।

    कुछ को दिल लगाने के इस खेल में, जीवन भर के हमसफ़र मेल जाते हैं

    कुछ किस्से होते हैं, कुछ कहानियाँ होती हैं,

    कुछ के लगे हुए दिलों का टूट जाना होता है।

    समय बीतता है,

    कुछ ख़ुद किताबों की राह पर वापस लौट आते हैं,

    कुछ के के सीनियर आर्टिस्ट्स उन्हें वापस ले आते हैं।

    कॉलेज का आख़िरी वर्ष, जोरों शोरों से मेहनत होती है,

    हाथों मैं डिग्रियों का आना होता है।

    कॉलेज छोड़ते हैं यादों के साथ,

    आख़िरी दिन थोड़ा रोना गाना होता है।

    हाथों में डिग्रियाँ लिए निकल चलते हैं सभी कलाकार ऑडिशन देने,

    आख़िर किरदार भी तो निभाना होता है।

    कुछ डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, लॉयर्स का किरदार प्राप्त करते हैं,

    तो कुछ स्पोर्ट्स परसन और आर्टिस्ट्स का बन जाना होता है।

    उम्र शादी की आती है, ढोल नगाड़े बजते हैं, नाच गाना होता है।

    एक नन्ही-सी जान दुनिया में आती है, उन कॉलेज वाले स्टूडेंट्स का माँ-बाप बन जाना होता है।

    नौकरी करते जाते हैं, जोड़ों में दर्द बढ़ जाते हैं, आँखों पर चश्मे चढ़ जाते हैं।

    ये ज़्यादा वक्त नहीं टिकता, ढलता है,

    अपना था ही कहाँ?

    ये जनाना, मर्दाना-सा शरीर भी पुराना होता है।

    साँसे थम जाती है, कंधे दिए जाते हैं,

    मिट्टी से बना था, इस शरीर को मिट्टी को लौटना होता है।

    साँसें गिन के मिली थीं, इनका ख़त्म हो जाना होता है।

    रिश्तेदारों का आना होता है, पूरी ज़िंदगी भले ही बुराई की हो

    पर कितना अच्छा आदमी था, भगवान ने जल्दी पूछ लिया

    ये कहकर, वह कितने एक हैं, ये जताना होता है।

    तो ये थी मेरी नाट्य कथा,

    भ्रमित मत होइएगा...

    मैं ज़िंदगी की कहानी थोड़ी सुना रही थी।

    ये ज़िंदगी थोड़ी है, ये तो रंग मंच है।

    यहीं आना होता है, यहीं से जाना होता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मान्या श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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