रेनर मरिया रिल्के को

rainar mariya rilke ko

हरिश्चंद्र भट्ट

हरिश्चंद्र भट्ट

रेनर मरिया रिल्के को

हरिश्चंद्र भट्ट

और अधिकहरिश्चंद्र भट्ट

    तूने अपना एक-एक क्षण समर्पित किया इस जग को

    जिसकी रगों के लहू में मृत्यु के अणु जीवित हैं।

    कह दे, दुःखानंद में पुलकित होकर तूने अपनी कविता में

    सभी को जीवन रस पिलाया और पीया न?

    यौवन-सम सर्वप्रथम जब वर्षा होती है,

    तब जो झरने बहने लगते हैं वे सब निरंतर कभी नही बहते।

    कौमार्य-युक्त स्रोतों को मरुभूमि-बनी-शिलाओ में अटकना पड़ता है।

    यदा-कदा वे उन्हे तोड़कर फिर से बहते हैं या सदा के लिए लुप्त

    हो जाते हैं।

    जब तेरा हृदय-स्रोत सूख गया, तब तेरी व्यथा कैसी होगी—

    इसे मैं ख़ूब समझता हूँ—मेरे हृदय की भी वही कथा है।

    ऊष्ण अश्रु और उबलता हुआ अग्नि-रस-अंतस्तल में जो समा

    लेता है

    वह या तो पृथ्वी ही हो सकती है या कवि-हृदय।

    रवि-रश्मि प्रकाशित हैं, इस पृथ्वी के फलों और रसो में

    तूने अनन्त काल की किरण-रस-समृद्धि देखी।

    मनुष्य के हाथों की वह शक्ति भी देखी जो धरती की मिट्टी में

    अन्न की अनंत सिद्धि भर देती है।

    विकलता से मैं सतत जागता हूँ, प्रभु! तुझे यदि ज़रूरत पड़े

    तो हाज़िर हो जाऊँ। तेरी प्यास मैं ही तो बुझा सकता हूँ।—

    इस प्रकार कहकर तू अपना हृदय समर्पित करता है।

    और मैं भी किसी अनाम को वैसे ही समर्पित कर सकूँ—

    शरण को उर-दौर्बल्य मानता हूँ

    गुलाबी, लाल, सफ़ेद, पीले सभी तरह के गुलों के

    हे प्रेमी! तूने सुमन-सुरभि से अपना मन भर लिया

    और उस महकती हुई ख़ुशबू को दुनिया को पिलाया।

    अरे! उसी का काँटा तेरी मृत्यु का कारण बना।

    प्रति वर्ष जहाँ गुल खिलते है वहाँ

    कवि के मृत्यु-लेख भले ही रचे जाएँ।—

    तेरे ये शब्द सदा ही मेरे जीवन-मरण के आलेख बने।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 285)
    • रचनाकार : हरिश्चंद्र भट्ट
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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