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रचनावादी

rachnavadi

हिमांशु विश्वकर्मा

और अधिकहिमांशु विश्वकर्मा


    नैनीताल के ख़ास रंगकर्मी महेश जोशी जी, एच.एस. राणा और ललित तिवारी के लिए

    विभिन्न रचनावादी संस्कारों में सम्मिलित होते हुए भी
    नाट्य और रंगमंच के युवा साथी
    जब मिल पड़ते हैं
    ज़िंदगी की उकाल1 और उतारों के बीच कहीं
    तब वे क्या खोजेंगे?
    तब वे क्या भोग रहे होंगे?
    इस तर्पण के मध्य में
    तुम और मैं
    तब क्या रोप रहे होंगे?
    एक से नहीं होते
    रंग हर दिन के
    न ही उन पर सवार धवलकिरण
    उसी वेग से पड़ती है
    जिस वेग से
    उस दिन पड़ी थी
    ठीक एकलव्य और संजय की शक्ति की तरह
    एक को मिली पक्ष की दृष्टि
    और एक से छीना गया उसका धम्म
    काल-कालांतर
    सब मौन
    सबको ज्ञात
    पर चोग़ों की बनावट अभी अच्छी नहीं
    भीतर का मद्य
    अभी भी उसी व्यापकता में
    रस की मीठी धारा
    अकिंचन का लहू बन फूट रिसता है
    मस्तिष्क समाज का जब फूटेगा
    तब उसमें सूर्यधवल फूटेगा
    अगर
    मनन जालसाज़ी है
    मन उसका भागी है
    अगर
    यौवन बेगारी है
    तो तन उसका व्यापारी है
    और चेतना जब उत्पन्न रिसती जाती है
    वह पीछे-पीछे कल्प द्वार बंद कर आती है
    गूढ़ संतुलन
    गूढ़ इच्छा
    गूढ़ संवाद
    देखो! तीनों नश्वर
    और
    चुनाव केवल
    अपने सत्य का!
    स्रोत :
    • रचनाकार : हिमांशु विश्वकर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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