क़िस्सों के क़ैदी

qisson ke qaidi

सुखपाल संघेड़ा

सुखपाल संघेड़ा

क़िस्सों के क़ैदी

सुखपाल संघेड़ा

और अधिकसुखपाल संघेड़ा

    हम जो चौपाल में गाते हैं हीर के गीत

    घर में बेटी के नाक में नकेल डालते हैं

    कोई अपराध नहीं करते

    क़िस्सों के क़ैदी हैं

    क़ैद का क़ायदा निभाते हैं

    हमने तो नानक को आँखों पर बिठाया

    बुल्ले के पाँवों को हाथ लगाया था

    हम

    जो आज उनके क़िस्से गाते हैं

    तब उन्हें भी कोई

    क़िस्सा ही सुनाया था

    हम

    जो आने वाले कल को टेढ़ी नज़र से देखते हैं

    आज से आँख मूँदकर

    कल की कथा कहते हैं

    कोई अपराध नहीं करते

    क़िस्सों के क़ैदी हैं

    क़ैद का क़ायदा निभाते हैं

    हर पथिक का है अपना पीर

    मानते हैं

    हर सफ़र की अपनी तावीर

    मानते हैं

    लेकिन हम मिट्टी के जाए

    हमें मिट्टी का मोह

    जड़ की ज़ून झेलता है

    अतीत की आँखों में आँखें डालकर

    हम भविष्य की ओर

    पीछे की ओर चलते हैं

    लाख ठोकरें खाकर भी

    हमारी पीठ पर उगी है आँख

    और ही हमने आगे की ओर

    बढ़ने का तरीक़ा सीखा है

    तुम कहो हमें भुलक्कड़

    हम इस गलती पर शर्मसार हैं

    यह भूल माफ़ करवाते

    हम क़िस्सों के क़ैदी हैं

    क़ैद का क़ायदा निभाते हैं

    अंधकार से डरते

    अँधेरे की पूजा करते हैं

    तुम रोशनी के आशिक़

    अँधेरे में कुछ ऐसी शमाँ जलाते हो

    कि परवाने बनकर जल जाते हो

    जलते परवाने देखकर हम फिसल जाएँ

    अंधकार में एक फ़ुट और गहरे धँस जाएँ

    गर्क हो जाएँ

    कभी-कभी हमारा मन भी करता है

    कि ज़िंदगी की आँखों में आँखें डालकर देखें

    ठिठुरते काँपते धूप तापने को

    हवाओं के साथ भागने, हाँफने को

    तुम बताते

    हम हँसते

    कि क़ैद होती

    जीवित दफ़नाए जाना

    मौत भोगने की ख़ातिर

    सयानों के कथनानुसार

    कुछ सदियाँ सहने पर

    हम इस मृत्युदंड को

    जीवन मान बैठे हैं

    मन्नतों में उम्र बिताते हैं

    क़िस्सों के क़ैदी हैं

    क़ैद का क़ायदा निभाते हैं

    इस क़ैद की चोटी

    हमारी नज़र से ऊँची

    इस क़ैद की नींव

    पाताल तक गहरी

    स्वतंत्र हवा में उडने वालों

    खुले मैदान, आसमान वालों

    तुममें से कभी कोई

    शब्दों में चाँदनी बंद करके

    आँखों में आसमान भरकर

    हमें मुलाक़ात के लिए लाया

    बात करो

    हमारे सिरों पर

    स्थिरता का आरोप लगाने वालों

    सारे ज़माने की ज़िल्लत से

    सदियों गहरे धँसे

    हमारे पाँवों का ध्यान आया क्या

    तो बात करो

    धँसे हुए पाँवों पर धँसकर, खड़े रखकर

    सिर को किसी किसी तरह सलामत करके

    दुखते दिल पर हाथ टिकाकर

    लय में गाते हैं हीर

    बेटी को नकेल डालते हैं

    आने वाले कल को टेढ़ी नज़र से देखते

    आज की आँख मूँदकर

    कल की कहानी डालते

    अपराध नहीं करते

    क़िस्सों के क़ैदी हम

    क़ैद का क़ायदा निभाते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 672)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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