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मीठक मर्म

mithak marm

विवेकानन्द ठाकुर

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और अधिकविवेकानन्द ठाकुर

    गाम सँ मधुबनी

    अबैत-अबैत

    भात भ’ जाइए चावल

    दालि-तड़का

    तीमनक झोर-सब्जीक शिरुआ

    मधुबनी सँ दरभंगा

    अबैत-अबैत

    सरिसव भ’ जाइए सरसो

    जोगियार-जोगियारा

    थलबार-थलबारा

    जेना-जेना

    आगाँ बढ़ैत

    तेना-तेना

    अपन ‘बोली-बानी’ केँ

    पाछाँ धकलैत

    एकरा सँ

    पिंड छोड़बैत

    पैघ-पैघ

    शहर मे

    अधिकांश

    देखौँसक मारल

    बनि जाइत

    पैघ-पैघ

    लोक

    अपन-अपन

    घर मे

    पहिल बंधेज

    अपन बोली-बानी सँ

    पूर्ण परहेज

    कोराक बच्चा केँ दुलार

    हृदयक हिलकोर

    प्रेमक मधुर संवाद

    सभक करैत अनुवाद

    स्वतः स्फूर्त

    अति कोमल-भावुक क्षण

    तकरो पर

    अनठिया बोली सँ आक्रमण

    मोन पड़इ छनि

    अपन बोली-बानी’

    मुदा, तखन

    जखन उठइ छनि मथदुक्खी

    पत्नी केँ वेदन

    दुनू करइ छथि

    हाकरोस-रोदन

    माय गे माय…

    बाप रौ बाप…

    एहि मंत्रक जाप सँ

    होइ छनि

    कष्टक हरण

    दुखक निवारण

    जखन धरि

    शरीर मे ताप

    तखने धरि

    मंत्रक जाप

    जखन-जखन

    अओता गाम

    धिया-पुता केँ रहता

    लगओने लगाम

    ओकर सभक

    तीत अकत्त जीह

    भ’ ने जाइ

    कत्तौ मधुर-मीठ

    रहता साकांक्ष

    पूर्ण साकांक्ष

    अपने त’

    जँ-तँ

    धिया-पुता धरि

    नहि बुझलक

    मीठक मर्म

    नहि बुझलक

    नहि बुझलक

    स्रोत :
    • पुस्तक : चानन घन गछिया (पृष्ठ 96)
    • रचनाकार : विवेकानन्द ठाकुर
    • प्रकाशन : विवेकानन्द ठाकुर
    • संस्करण : 2011

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