प्रतिरोध

pratirodh

मोहन कुमार डहेरिया

और अधिकमोहन कुमार डहेरिया

    प्रतिरोध है कहीं अगर

    होना चाहिए उसे प्रतिरोध की तरह

    उस सिक्के-सा हो वह

    जब भी उछाला जाए

    खड़ा हो जाए,

    चित्त पट

    ज़ाहिर है

    ज़मीन से जुड़ने की उसकी एक कठोर नियमावली हो

    खड़े होने, बैठने, ढहने का ख़ुद का लपटनुमा शिल्प

    घास-फूस से बना बिजूका नहीं है वह

    आंदोलनों की तश्तरी में क्रांति की सौंफ-इलायची

    असहमति, क्रोध की बारिश के बाद

    अचानक निकला इंद्रधनुष भी नहीं

    जहाँ है तो है

    जहाँ नहीं,

    पीढ़ी-दर-पीढ़ी ग्लानि में सिर झुकाकर चलना पड़ता वहाँ के नागरिकों को

    प्रतिरोध में सारे लक्षण भी होने चाहिए प्रतिरोध के

    मसलन

    सच्चे प्रतिरोध की नहीं बन सकती फ़र्ज़ी अनुकृति

    आसानी से रूप नहीं धर सकता उसका कोई बहुरूपिया

    इसलिए

    जब अवसर आए शोषकों, तानाशाहों की फाँसी का

    नहीं हो फिर ऐसी अपील

    कि पूरी करुणा के साथ किया जाए यह कार्य

    स्पष्ट है

    न्याय के रूपवादी मकड़जाल से दूर रहे प्रतिरोध की भाषा

    प्रतिरोध है कहीं अगर

    सच्चे प्रतिरोध की तरह रहे चौकन्ना

    कोई धर्मगुरु उसे चमत्कारिक मूर्ति बनाने की कोशिश करें

    और सरकारें सेल्फ़ी-पॉइंट में बदलने की

    प्रतिरोध एडजेस्टेबिल बेल्ट नहीं है

    कि जब जैसा, जितना चाहा

    कस लिया रीढ़ की हड्डी पर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहन कुमार डहेरिया
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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