प्रतिध्वनि

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राजेश जोशी

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प्रतिध्वनि

राजेश जोशी

और अधिकराजेश जोशी

     

    अब वो तुम्हारे बोले गए वाक्य के सिर्फ़ अंतिम शब्द
    दोहराती है
    तुम उसे देख नहीं पाते या देखकर अनदेखा कर जाते हो
    लेकिन वो वीरान घाटियों से, उदास स्मृतियों से भरे गुंबदों से
    कंदराओं से और सूख चुके कुओं से
    लगातार दोहराती रहती है
    तुम्हारे वाक्य के अंतिम शब्द
    तुम वो ही शब्द बोलते हो अक्सर
    जो तुम सुनना चाहते हो बार-बार
    कहते हैं एक समय वो बहुत बातूनी थी
    कतरनी की तरह चलती थी उसकी ज़बान
    बातों के लिए उसे समय कम पड़ जाता था
    (मुझे कई बार लगता है
    स्त्रियाँ भी अगर पुरुषों की तरह कम बोलतीं
    तो कितनी सूनी लगती यह धरती
    और बच्चे कितनी देर से सीख पाते बोलना)
    वो इतनी ज़्यादा बड़बड़ करती थी
    कि नदियाँ उसकी बातों में खोकर बहना भूल जाती थीं
    हवाएँ उसकी बातें सुनने को रुक जाती थीं 
    बादल ग़लत पड़ावों पर अपना डेरा डाल देते थे
    पर कहते हैं कि एक दिन हेरा* के श्राप ने
    उससे उसकी सारी बातें छीन लीं

    इसलिए तो घने जंगलों में अपना रास्ता भूलकर
    जब तुम ज़ोर-ज़ोर से पुकारते थे किसी को
    वो सिर्फ़ तुम्हारे अंतिम शब्द दोहरा देती थी
    वो जवाब नहीं दे पाई तुम्हारे किसी प्रश्न का
    वो एक परछाईं की तरह चलती रही तुम्हारे साथ-साथ
    उसने खो दिए अपने सपने और
    अपना बातूनीपन 
    वो जिसे तुम अनदेखा करते रहे लगातार
    वो अपनी अनुपस्थिति में भी रही उपस्थित
    और दोहराती रही तुम्हारे हर वाक्य के
    अंतिम शब्द!

    __________________________
    *ग्रीक पुराण के अनुसार हेरा देव सम्राट ज़्यूस की पत्नी थी, जिसने ईको (प्रतिध्वनि) को श्राप दिया था कि वह अपने शब्द नहीं बोल पाएगी और सिर्फ़ दूसरे के बोले गए वाक्य के अंतिम शब्द ही दोहरा सकेगी। ईको नारसीसस से प्रेम करती थी। श्राप के कारण ही वह अंतिम समय में नारसीसस की मदद नहीं कर पाई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 101)
    • रचनाकार : राजेश जोशी
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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