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सुंदरता

sundarta

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार

ख़लील जिब्रान

अन्य

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ख़लील जिब्रान

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ख़लील जिब्रान

और अधिकख़लील जिब्रान

     

    एक कवि ने सौंदर्य के संबंध में जिज्ञासा व्यक्त की।

    अलमुस्तफ़ा ने उत्तर दिया :

    सौंदर्य की खोज में भटकना निरर्थक है, वह तो तभी प्राप्त होगा जब वह स्वयं
    तुम्हारा पथ और प्रदर्शक न बन जाए।

    उसका स्वरूप-वर्णन तभी संभव है, जब वह स्वयं तंतुवाय बन तुम्हारे शब्दों का
    चयन न करे।

    पीड़ित और संतप्त व्यक्ति कहते हैं कि सौंदर्य करुण और मृदु है?

    सौंदर्य अपने ही लावण्य से लज्जावगुंठित तरुणी के मध्य आता और जाता है।

    आवेशप्रिय विषयी व्यक्ति कहते हैं—नहीं, सौंदर्य शक्ति-रूपा है।

    —झंझावात के समान प्रकट होकर समस्त भूमंडल में, पृथ्वी-आकाश के ओर-छोर
    कंपन पैदा कर देता है।

    थके-हारे लोग कहते हैं—सौंदर्य एक स्रिग्ध-मंथर स्वर है, जो अंतरात्मा में ही प्रकट होता
    है।

    —हमारे मौन में ही उसे व्यक्त होने की प्रेरणा मिलती है, उसका रूप अंधकार में
    काँपती हुई उस प्रकाश-रेखा के समान है जो अपनी छाया के डर से तेजस्वी नहीं होती।

    अधीर चंचल व्यक्ति कहते हैं—हमने गिरी-शृंगों पर उसका तार स्वर सुना है।

    —उसकी चीत्कार के साथ घोड़ों के पदचाप, पंखों की फड़फड़ाहट और शेरों की
    गर्जना भी मिली हुई थी।

    रात के पहरेदार कहते हैं—सौंदर्य का उदय प्रभात में उषा के संग पूर्व दिशा से होता है।

    मध्याह्न के मज़दूर और दूर के यात्री कहते हैं—सौंदर्य को हमने संध्या के गवाक्षों में
    से पृथ्वी पर झाँकते हुए देखा है।

    हिमवासी शिशिर-पीड़ित व्यक्ति कहते हैं—सौंदर्य बसंत में गिरी-शिखरों पर नृत्य
    करते हुए अवतरित होगा।

    ग्रीष्म की दुपहरी में खेत जोतने वाले किसान कहते हैं—हमने उसे मधुमास के कोमल
    किसलयों में मुस्कराते देखा है, उसके केशरी केशों पर हिमकण विभूषित थे।

    ये सभी बातें तुम सौंदर्य के स्वरूप-वर्णन में कह चुके हो।

    तुम सौंदर्य के विषय में न कहकर केवल अपना ही स्वरूप-वर्णन करते हो।

    वस्तुतः सौंदर्य कोई सामयिक इच्छा नहीं अपितु आत्मा विलास है।

    वह प्यासे होंठों या भिक्षातुर हाथों की ग्राह्य वस्तु मात्र नहीं है।

    बल्कि वह है हृदय की ज्योतिशिखा या पूर्णतः मुग्ध आत्मा!

    सौंदर्य कोई पाषाण-प्रतिमा नहीं कि बाह्य चक्षु दर्शन कर सकें, या वह वैसा संगीत
    नहीं जो बाह्य कर्णो से श्राव्य हो।

    सौंदर्य तो वह प्रतिमा है, जो बंद आँखें भी देख सकें, और वह संगीत है जो बंद कान
    भी सुन सकें।

    सौंदर्य वह रस नहीं जो कड़ी छाल में छिपा रहता है और न ही वह ऐसा पंख है
    जिसके साथ ख़ूनी पंजा लगा है।

    अपितु वह तो सदा फूला-फला उद्यान है अथवा सदा ही उड़ते हुए फ़रिश्तों का एक
    दल।

    ऐ आर्फ़लीज-निवासियो! सौंदर्य वह जीवन है जो अपने सुंदर पवित्र मुख का घूँघट
    उठाता है।

    परंतु तुम्हीं तो जीवन हो—और तुम्हीं उसके आवरण।

    सौंदर्य दर्पण में अपने ही रूप को निहारती हुई नित्यता है। परंतु तुम्हीं तो नित्यता
    हो और तुम्हीं दर्पण।

     

                                                           
    स्रोत :
    • पुस्तक : मसीहा
    • रचनाकार : ख़लील जिब्रान
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2016

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