यंत्रणापूर्ण जिनगीक सभटा ऊँच-नीच
हमरा अंगेजल अछि बाउ!
हम एकटा सोहिजनक गाछ भऽ जीलहुँ
जकर सर्वांग भूआसँ आक्रान्त रहैत आयल
हारल ई देह-गाछ तहिये ने कोकनि चुकल
जहियेसँ एकर देहपर
दोसर गाछ अपन अस्तित्त्व बनाबऽ लागल।
बाउ!
हम अपन एहि मानसिक सहरजमीनकेँ
लाख व्यापक बनयबाक प्रयास करैत अयलहुँ अछि
ई चाहे तँ फूसि-फटक भऽ जाइत रहल अछि
अथवा, शून्यमे विचरैत कोनो नीरा-जीवी
अथवा, विजया-सेवी मनुक्खक बकबास भऽ कऽ
एहि समाज द्वारा मान्यता प्राप्त करैत रहल अछि
आ तेँ
जीवनक एहि सांध्यबेलामे
परिवर्तनक ओर हेरैत बितल सम्पूर्ण वय
आइ पुनः ओही प्रश्नवादी मुद्रामे
जुमुस बन्हने ठाढ़ ठहाका लगा रहल अछि!
हमरा लगैये
अपन संस्कृतिक फूसि मोह आ बड़प्पनक कटाह जंगलमे
अनेरे बौआइत रहलहुँ
स्मृतिमे जीबाक हमर-अहाँक ई आम मानसिकता
मोहाच्छन्नकऽ कऽ लोककेँ
तौड़िकऽ लुंजकऽ दैत छै बाउ!
अपन पितरक तर्पण करैत
आकि
मनुवादी परम्परामे पलैत
कुल, गोत्र आ मूलक ओर-छोर मिलबैत
अथवा
गौरवपूर्ण इति-वृत्तिक बीच झिलहरि खेलैत
आइ जेँ कि वृत्तमानसँ कटल रहलहुँ
जीवनक सभसँ अधलाह शब्दपर
स्वीकारक मोहर मारबापर बिर्त्त छी!
आइ हम हिमालयक कोरामे बसल
अपन गाम बीच ठाढ़
आँखि मध्य विराट शून्यकेँ लदने
शरीरक असहय भारकेँ
दू टा कमजोर पयरपर
सम्हारि रखबामे विफल भऽ रहल छी
ई एकटा मुद्रा थिक पश्चात्तापक
जे हमर दीर्घ जीवनक सोझ निष्कर्ष थिक!
हम आर अधिक ई पीड़ा नहि सहि सकब
हम जा रहल छी बाउ!
अहाँ सभ द्वारा उठल ई असंख्य तर्जनी
कखनो हमरा खौँझबैत सन बुझाइत अछि
कखनो हमरा बेधैत सन लगैत अछि मीत
हम जीवन सार्थकता मादे सोचिये टा सकलहुँ
कऽ नहि पौलहुँ किछु
जहिया जुआनीक उठानपर रही
गबदी मारब नीक लगैत रहल
जहिया अनीतिक विरोधकऽ सकैत रही
दृष्टि-लज्जासँ लीबल रहलहुँ
वैचारिक स्तरपर जतबे साकांक्ष रही
व्यवहारमे ततबे शिथिल होइत गेलहुँ
हमरा अहाँ सभ किन्नहु माफ नहि करब
अहाँ सभ जे आइ
विकलांग स्थितिक भोग भोगि रहल छी
सभक भागी हमहीं छी/हमहीं टा छी
हम जा रहल छी प्राण
मुदा संघर्षक ई प्रवाह चलैत रहबाक चाही
मरनि ने भऽ जाय ई धार
हमरे जकाँ अहँक संतति दिअय ने ई उपराग
मनुक्ख स्वयं होइये अपन भाग्यविधाता
से जानब हे हमर जान
बैरागी ने भऽ पाबय ई मोन-प्राण!
रामनामी चद्दरि ओढ़ि जीयब, चाहे
मंदिर-मस्जिद भऽ कऽ रहब, चाहे
पाग, पगड़ी आ पयजामाक कोर हेरैत रहब
तँ रहि जायब मैथिल—
माने मिथिलाबासी
अहाँ सभकेँ एकटा सौँस मनुक्ख बनबाक अछि
भोगबाक अछि दर्द समान रूपेँ
मिथिला आ मॉरिससक
एकेटा होइत छै
वियतनाम सँ भोजपुर आ नालन्दा धरिक
कथाक मूल कथ्य
से जानब हे हमर मीत
मुदा कानब नहि गीत
- पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 39)
- रचनाकार : बिभूति आनन्द
- प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
- संस्करण : 1984
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.