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फूला हुआ काँस

phula hua kaans

अरविंद यादव

अरविंद यादव

फूला हुआ काँस

अरविंद यादव

और अधिकअरविंद यादव

    पानी में डुबकी लगाती सड़कें और गलियाँ

    तथा उन पर रास्ता भूल

    क़तार में खड़ी हाँफती गाड़ियाँ

    कह रही हैं कहानी 

    आसमान से टूटती उस आफ़त की

    जिसने गाँव और छोटे शहरों को ही नहीं

    महानगरों राजधानियों को भी 

    समेट लिया है अपने आग़ोश में

    मदमाती नदियाँ और नाले

    आतुर हैं समेटने को अपनी बाँहों में

    धरती की वह हरियाली

    धरती का वह जीवन

    जिसके बिना धरती को आप कह सकते हैं 

    सूर के कृष्ण का एक खिलौना

    या अपनी सुविधानुसार सप्ताह का एक दिन 

    वह जिसके स्नेह की बौछार से 

    मयूर की मानिंद नाच उठता था धरती का मन

    लहरा उठता था सतरंगी आँचल 

    अनायास जिसकी देह पर

    आज उसी के तांडव से गिर रहे हैं औंधे मुँह 

    सीना ताने खड़े पेड़

    उपलों की तरह बह रहे हैं धीरे-धीरे 

    सिर से उतर अरमानों के छप्पर 

    इतना ही नहीं बह रही है धीरे-धीरे 

    संघर्षों में अडिग रखने वाली, अंतर की वह पूँजी

    पानी के अनवरत प्रहार से

    सूजने लगी है दरवाज़ों और चौखटों की देह

    जिसने कर दिया है मुश्किल

    उनका इधर-उधर चलना

    अपने अभिमान में सीना ताने खड़ी

    स्व धैर्य की डींग हाँकने वाली 

    घरों की दीवारें और छतें

    आज स्वयं को असहाय पाकर

    हो रहीं हैं शर्म से पानी-पानी

    पेट की आग और ज़िंदगी बचाने की जद्दोजहद में

    कोहराम मचाते खूँटे

    जान बचाकर पेड़ों की गोद में छिपने को

    दौड़ते बंदर और गिलहरियाँ

    जिन्हें पत्थर होती संवेदनाएँ देख रही हैं एकटक

    उल्टे खड़े घरों से

    बेबसी का आलम यह है कि

    वह चूल्हा

    वह आग

    जिनसे रोज़ सुबह-शाम

    होती थी एक दूसरे की मुलाक़ात

    ने भी नहीं देखा है एक-दूसरे का मुँह

    जाने कितने दिनों से

    इतना ही नहीं छप्पर के नीचे सिसकती वह चक्की

    जिसे नहीं करने पड़े थे कभी फाँके

    किंतु अन्नाभाव की वजह

    जाने कितने दिनों से

    दौड़ रहे हैं चूहे उसके भी पेट में

    इस भयावह समय में 

    जब कि डूब रही हैं अनवरत संवेदनाएँ

    डूब रही हैं अनवरत अनंत आशाएँ

    डूब रहे हैं अनवरत भविष्य के सुनहरे स्वप्न

    और जीवन की जिजीविषा

    इन सबके बीच कितना कुछ कह गया अनकहे

    गले तक डूबा फूला हुआ काँस।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अरविंद यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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