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फराक-फराक नहि सोचब

pharak pharak nahi sochab

ज्योत्स्ना चन्द्रम्

अन्य

अन्य

ज्योत्स्ना चन्द्रम्

फराक-फराक नहि सोचब

ज्योत्स्ना चन्द्रम्

और अधिकज्योत्स्ना चन्द्रम्

    नापि रहल छै ओकर साँस

    अहाँक उड़ानक उँचाइ

    नापि रहल छै ओकर चेतना

    अहाँक पाँखिक शक्ति

    सूतलि नहि अछि

    श्लथ सेहो नहि भेल अछि

    ने निस्पंद भेल छै ओकर इच्छा

    तऽ अंतरिक्ष कें देखि रहल अछि

    लीन अछि अपन अंतस् मे

    समेटने सम्पूर्ण ऊर्जा-पुंज कें

    रचबाक लेल अपन,

    अपन चारू दिस मंगलमय सृष्टि

    ओकर करजन्नी-सन आँखि मे

    पसरल छै निखिल विश्व

    आ, जे संजोगि रहल अछि

    अहाँ कें देबाक लेल

    भरि मुँह हँसी,

    सूप भरि प्रेरणा साहस—

    कि जतऽ अहाँ चूकी,

    समेटि लिअए अपन आँचरक परिधि मे

    अहाँक ह्रास

    अहाँक टूट,

    अहाँक घुटन

    अहाँ भ्रममे नहि रहब

    एसगरि नहि अछि

    ने अहाँ सँ दूरे अछि

    लाजवंती सेहो नहि अछि

    तऽ आधार-शक्ति अछि, जे

    अहाँक संग सदिखन

    डेग-डेगपर गतिशील अछि

    ओकरो अंदर

    जाड़क दुलरुआ रौद छै

    बसातक वासंती लय छै

    ठोपर गीत छै

    सकल विश्व मीते-मीत छै ओकरो

    अहाँ देखब,

    फराक-फराक नहि सोचब

    संभावना सँ फराक

    नहि छै ओकर हाथ

    सीढ़ी लगाएब जनैत अछि ओहो आकाश मे

    नापबाक आकांक्षा करैत अछि ग्लोब कें

    ओकर करजन्नी-सन आँखि मे

    रक्ताभ किरण छिटकि रहल छै

    देखब,

    अहाँ देखब

    फराक-फराक नहि सोचब

    स्रोत :
    • पुस्तक : समग्र ज्योत्स्ना (पृष्ठ 38)
    • संपादक : विभूति आनन्द
    • रचनाकार : ज्योत्स्ना चन्द्रम्
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2017

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