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'पेस-पीस-स्पेस'

pes pees spes

प्रणव नार्मदेय

अन्य

अन्य

प्रणव नार्मदेय

'पेस-पीस-स्पेस'

प्रणव नार्मदेय

और अधिकप्रणव नार्मदेय

    अहाँ जँ

    अपन ‘स्पेस'क खोजमे

    ध्वस्त करैत छी

    ककरो जिनगीक ‘पेस' ‘पीस'

    सहजेँ प्रमाणित होइत छी

    साहसी क्रांतिकारिणी

    मुदा जँ

    स्थिर रखबा लेल

    अपन ‘पेस' ‘पीस'

    हेरैत छी कोनोखन अपन ‘स्पेस'

    चोट्टहि भ' जाइत छी घोषित हम

    अत्याचारी व्यभिचारी

    ओना

    बनाबैत अछि जाहिखन

    अहं अपन ‘स्पेस' ककरो मोनमे

    तखनहि लगैत अछि

    उखड़ ‘पेस' अपन

    अखर ‘पीस' अनकर

    त'

    कियैक नहि हम अहाँ

    बनबैत छी एक-दोसराक हियामे

    'स्पेस' अपन-अपन

    जाहिसँ कि

    बनल रहय ‘पेस' ‘पीस'

    सभक जिनगीक

    किएक त'

    बनल रहत जाधरि

    'स्पेस' इर्खा स्वार्थक

    आओर

    नहि क' सकब खोजी

    अपन ‘पीस' सबहक ‘पेस' मे

    बनओने रहत अशांति

    अपन ‘स्पेस' अहिना

    जिनगीमे हमरा सभक।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विसर्ग होइत स्वर (पृष्ठ 44)
    • रचनाकार : प्रणव नार्मदेय
    • प्रकाशन : नवारम्भ, पटना
    • संस्करण : 2017

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