पेड़ लड़ रहा है

peD laD raha hai

सोमदत्त

सोमदत्त

पेड़ लड़ रहा है

सोमदत्त

और अधिकसोमदत्त

    पेड़ लड़ रहा है

    पतझर से

    समुद्र में जैसे ख़ूब गहरे धँसाकर जाल खींचता है मछुआरा

    पाताल में फैलाकर जड़ें

    रग-रग की ताक़त समेट कर

    पोर पोर फेफड़े की तरह फैलाकर सिकोड़कर

    पचास परतों के तल में बसा जल

    खींच रहा है

    इस जल से

    वह सूरज का प्रखर ताप झेलेगा चाँदनी के मानिंद

    लू को ललकारेगा और पास आने पर उसे भर लेना सीने में

    इन सबको अपने प्राणों में रचाकर

    वह जीवन में बदलेगा

    एक-एक पत्ते का बदला लेगा पतझर से

    एक-एक शाख की चीख़ का

    एक पत्ते की जगह वह फोड़ रहा है दस कनखे

    पके शीशम से

    इन्हीं कनखों को वह पत्ते बनाएगा शाखाओं में बदलेगा

    उनमें फूल खिलाएगा फल लटकाएगा बीज उगाएगा

    दस हज़ार की जगह दस लाख पनपाएगा

    नेस्तनाबूत करके हर साज़िश

    वह पतझर को बदल देगा लहलहाते समुद्र में

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 122-124
    • संपादक : मनोहर वर्मा
    • रचनाकार : सोमदत्त

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए