पानी है बहुत आत्मीय

pani hai bahut atmiy

मलय

मलय

पानी है बहुत आत्मीय

मलय

और अधिकमलय

    पानी

    अपनी तरलता में गहरा है

    अपनी सिधाई में जाता है

    झुकता मुड़ता

    नीचे की ओर

    जाकर नीचे रह लेता है

    अंधे कुओं तक में

    पर पानी

    अपने ठंडे क्रोध में

    सनाका हो जाता है

    ठंडे आसमान पर चढ़ जाता है

    तो हिमालय के सिर पर

    बैठकर

    सूरज के लिए भी

    चुनौती हो जाता है

    पर पानी

    पानी है

    बहुत आत्मीय

    बहुत करोड़ों करोड़ों प्यासों का

    अपना

    रगों में ख़ून का साथी

    हो बहता है।

    पृथ्वी-व्यापी जड़ों से होकर

    बादल की खोपड़ी तक में

    वही होता है—

    और अपने

    सहज स्वभाव के रंगों से

    हमको नहलाता है

    सूरज को भी

    तो आईना दिखाता है

    तब तक़रीबन पानी

    समय की घंटियाँ बजाता है

    और शब्दों की

    सकेलती दहार में कूदकर

    नदी हो जाने की

    हाँक लगाता है

    पानी बहा जा रहा है

    पिया जा रहा है

    जिया जा रहा है

    ख़ुद जी पाने की लड़ाई में तत्पर है पानी

    चट्टानी अँधेरी पकड़ से

    लड़ते हुए उगकर

    समूची पृथ्वी पर

    अपनी तरह तौर से

    लहरने में तत्पर है पानी

    पानी कभी ख़त्म कर देने के लिए

    ज़मीन में सोखा जा रहा है

    तो भाप में उड़ा जा रहा है

    उठते सिरों को लतियाता हुआ

    अब पानी खौलती गंजी से भी

    आँखों के ढक्कन

    या पलकों से चू नहीं रहा है

    अब आग का आईना देख रहा है

    भले ही भूख-प्यास से सूख भी रहा है

    हवा दूर है

    आती हुई दूर है

    हिमालय की तरह

    उठी रही दिमाग़ों में

    आने वाले समय की सूचना में

    हमारी रगें

    बिजली की तरह कौंधती हैं

    अभी हवा बाहर चलती है

    बहुत जलती है

    पर भीतर ख़ून में रमा हुआ पानी

    आकाशी झकोरों से हाथियों पर

    दौड़कर आने की तैयारी में लगा है

    जगा है शायद अब पानी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मलय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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