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पंचतंत्र का पेड़

panchtantr ka peD

संध्या चौरसिया

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संध्या चौरसिया

पंचतंत्र का पेड़

संध्या चौरसिया

और अधिकसंध्या चौरसिया

    चार दोस्त मिले थे चाय पर

    पास में चुपचाप खड़ा था एक पेड़ नीम का

    दुबला-पतला, शांत-गंभीर

    क़द वही कोई आठ फ़ीट

    एक दोस्त ने सबसे पूछा :

    बताओ साथी तुम्हें ये पेड़ कैसा लगता है?

    ये पेड़ है?

    या पेड़ की बो दी गई टहनी?

    किसी की लाठी है क्या?

    बताओ साथी तुम्हें ये पेड़ कैसा लगता है?

    पहले ने कहा, लाठी कहे तो याद आया

    ध्यान से देखो नीचे से ऊपर की ओर

    तो यह इस देश में गांधी के विचारों के

    व्यावहारिक प्रयोग की क्रमगत यात्रा है

    दूसरा बोला, अरे नहीं!

    यह तो द्विवेदी जी का कुटज है

    गाढ़े का साथी! पाषाण की छाती भेदता

    अपने एकलपन में मस्त

    दमदार पेड़ों को एकांत का सबक़ सिखाता

    तीसरा बोला, यह चुनाव के दिनों का बोया हुआ एजेंडा तो नहीं?

    मैं यहीं था उस रोज़

    जब कंक्रीट से घेरकर विधायक जी

    बोकर गए थे इसका बीज

    चार बरस हुए विधायक जी

    बीज का ब्योरा करने नहीं आए

    उनकी अनुपस्थिति में यह कुपोषित रह गया

    कहो कुपोषित पेड़ देखकर तुम्हें किसकी याद आती है?

    चौथा ज़रा ग़ौर से देखा और बोला

    अरे! ये तो मात साहब हैं

    बहुत लंबे जीकर, और बहुत थोड़ा पढ़कर

    ज्ञान की मुट्ठी भर पत्तियाँ ऐसे शीर्ष पर ले गए हैं

    जहाँ कोई बच्चा-बुतरु पहुँच ही पाए

    'पंचतंत्र' का पाँचवा साथी चुप था

    वह कुछ नहीं बोला

    कहानी के अंत में

    वही भावी सदी का सबसे बड़ा आलोचक बना

    स्रोत :
    • रचनाकार : संध्या चौरसिया
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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