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पहाड़ों के उस पार

pahaDon ke us paar

हर्षित मिश्र

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हर्षित मिश्र

पहाड़ों के उस पार

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और अधिकहर्षित मिश्र

    बचपन में जब मैं कहानी सुनता

    पहाड़ों के उस पार की,

    तो लगता—

    जैसे धरती वहाँ और भी माँ हो जाती होगी,

    जैसे आकाश वहाँ

    ईश्वर की दृष्टि की स्थिर छाया बनकर ठहर गया होगा।

    मुझे लगता—

    वहाँ की हवा आरती गाती होगी,

    पगडंडियाँ वहाँ

    ऋषियों के जपमाल से टूटे मोती होंगी,

    और वृक्ष...

    वेद के मंत्र होंगे जो मिट्टी से फूटते हैं।

    मुझमें एक तीव्र कौतूहल था

    उस पार जाने को—

    जहाँ दादी कहती थी देवता रहते हैं,

    जहाँ पूरी होती है

    चार धाम यात्रा।

    जहाँ मृत्यु नहीं,

    मोक्ष मिलता है।

    पर जब पहुँचा—

    तो देखा, पर्वत के कंधे पर

    किसी अजनबी ने बाँध दी है मशीनों की गाँठ।

    और देवदार की आँखों में

    धुआँ बैठा दिया गया है।

    जहाँ ऋषियों की तपोभूमि थी,

    अब वहाँ

    निर्मूल पदार्थों की आभा बिखरी है।

    किसी ने पुरातन चट्टानों से

    उनकी जन्मकथा छीन ली,

    और बदले में

    कंक्रीट की अक्षरमाला थमा दी।

    अब जो ध्वनि आती है,

    वह शंख नहीं—

    जनरेटरों की थकी हुई साँसें हैं।

    जो कभी मौन होता था,

    अब अशब्द भी शोर बन चुका है।

    नदियाँ अब

    शब्द नहीं गुनगुनातीं,

    वे अब केवल

    दिशाहीन इच्छा का प्रवाह हैं—

    जो अपने ही तटों को काटती हैं।

    जहाँ ऋषि बैठते थे ध्यान में—

    अब वहाँ

    चट्टानों से टकराती सावधानियाँ लहराती हैं।

    घोड़े और खच्चर,

    जो एक समय

    जंगल के मौन का हिस्सा थे,

    अब मानव के हाहाकार का साधन हो चुके हैं।

    यहाँ पहाड़ कच्चे हैं—

    इतने कि हल्के से कंपन में भी दरक जाते हैं।

    और ये कंपन अब

    पाश्चात्य विकास की अंधी गूँज में बदल चुके हैं।

    जब भी कोई चट्टान खिसकती है,

    तो लगता है—

    जैसे सनातन की किसी ऋषि परंपरा को

    धकेल दिया गया हो नीचे

    मशीनों के पाँवों तले।

    और मैं डरता हूँ—

    कहीं अगला पत्थर

    किसी मौन योगी की आत्मा हो।

    और मैं...

    मैं भी वहाँ से

    एक टेढ़े वृक्ष की छाया में

    अपनी थकी आँखें छोड़कर

    चला आया—

    उन मैदानी इलाकों की ओर,

    जिन्हें मैंने कभी सपनों में नहीं देखा,

    जैसे देखा था

    पहाड़ों के उस पार की सुंदर दुनिया को।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हर्षित मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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