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पड़ाव पर गप्प!

paDav par gapp!

आनंद बहादुर

अन्य

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आनंद बहादुर

पड़ाव पर गप्प!

आनंद बहादुर

और अधिकआनंद बहादुर

    सबसे खट्टी बास वाले पड़ाव पर

    सब मिल बैठते 

    देहों की खट्टी मिट्टी की बास उठती

    चमरौंधे जूते

    अपनी-अपनी बिवाइयाँ सहलाते

    थके-हारे रुदन भरे गप्प! 

    अपना-अपना गमछा बिछाकर 

    माथ का पसीना

    धोती के पाड़ से पोंछते बूढ़े बतरस

    बूढ़ी देहों की पकी गंध से बसाता

    पड़ाव का तन-मन 

    सत्तू सानते दर्द

    आप बीती में प्रदर्शित करते

    समझ और समझदारी

    जो तब बुड़बकई थी धत्त! 

    हवा जैसे पीहर से 

    खोंयछा भर कर लौटती

    लाती अक्षत और पुड़िया भर सेनुर! 

    झुकते जब अपना अपना गट्ठर सिर पर लादने

    पराजय का देवता हँसता हुआ 

    अपना आशीर्वाद लुटाता

    चकमक पत्थर जैसी हँसी में 

    होती चिंगारी 

    सारा रास्ता होता बेढब

    रात की पोटली में पड़ा

    तुड़ा-मुड़ा

    एक सौ रुपया का 

    फटा-पुराना नोट

    झन-झनाकर बजता सुबह-दुपहर-शाम 

    कुछ सूखे पत्ते रातो-रात उड़कर

    पहुँच जाते

    सबसे दूर वाले पलों के गाँव

    वहाँ से पुकारते

    एक-एक का ले लेकर नाम

    उठते सभी गोटे

    एक-एक कर आँख मिचमिचाते

    उबासी लेते 

    तब फटता मन

    मुँह को आता कलेजा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद बहादुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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