जखन-जखन
अहाँक शीतल अनुरागक स्पर्श होइत अछि
हेरा सन जाइत छी हम
आ फूसि नहि कहैत छी
तखन, जखन अहाँक विवर्ण आँखिमे अपनाकेँ तकैत छी
अहाँ सहबासिनियेटा रहि गेल रहैत छी।
देखैत छी दीपक द्विरर्थक जरब
स्वयं तँ ई जरिये रहल अछि
दोसरोकेँ कोना नेने चलैछ संग
अनाहूत आ अनामन्त्रित
आ तखन
अहाँक मोन आ अपन इच्छापर तामस उठैत अछि
सोचैत छी
रोजे अन्हारसँ आक्रान्त चौराकेँ दीप देखबैत-देखबैत
अपने किये मिझायल-मिझायल सन भेल जाइत छी
हरदम गुनि-धुनिमे पड़ल रहब
चाहे
माछी जकाँ भनभनाइत रहब
एहि शताब्दीक लोकक
परिचय नहि छियै मलिकीनी
की कहू,
अनेरे पित्तमे डूमल अप्पूकेँ डेङबैत रहैत छी
विरोधी-बेंच जकाँ
हमर सभ बातमे अड़ंगा लगबैत रहैत छी
हम पुनः कहब, जे
कोनो पिजराउ सूगा जकाँ कचकचयबासँ नीक
पिजरासँ मुक्तिक ब्योंत धरायब उचित होइत छै
ठीके कहैत छी
मोनसँ मोन मिललापर मोन खुजैत छैक
एहि जयबारीक लोक तँ औन्हल घैलपर
पानि उझिलबाक आदी रहल अछि
परिवर्त्तनकामी तँ अछि
मुदा नरसंहार सँ डेराइत रहल अछि
तेँ हमर ई मान्यता अछि, जे
जखन गामक मुख्यमार्ग कचराक स्थान भऽ गेल हो
कनिको सिहकीपर गाम गन्हा उठैत हो
तँ ओहिमे काठी खरड़ि देबे नीक होइत छै।
अहाँ फेर कहब
हम भारतीय राजनीतिज्ञ जकाँ पगला गेल छी
आ कचहरीक फुटपाथपर बैसल
कोनो हस्त-रेखा विशेषज्ञ जकाँ
बकबास सभ अपन भीतरमे पोसि रहल छी
की कहू...
हे! इतिहासक कोनो पैघ मोड़क प्रवेश-द्वार
बड़ वेदनापूर्ण आ शिकस्त होइत छै
आ ओकरा लेल गोबरसँ गोइठा भऽ जेबा धरिक
एकटा नमहर प्रतीक्षाक सामना करऽ पड़ैत छै।
ओना अहाँक मरजी अछि
भीजल गोइठा जकाँ धुआँइत रहू
अप्पू जकाँ पाटोपर लिखि-लिखि कटैत-मेटबैत रहू
हमर मोनमे लिखल विचार नहि मेटा सकैत अछि
जाँघक अन्हार गली नहि भटका सकैत अछि
- पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 13)
- रचनाकार : बिभूति आनन्द
- प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
- संस्करण : 1984
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.