पैसा पैसा
साथ पढ़े लड़के बड़े होकर आपस में दयनीय
हो जाते हैं आँख नहीं मिलाते
पैसे वालों का कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता
वे कुछ भी ख़रीद लेते हैं बाज़ार
उनका आदी है
सरकार में उनकी दरकार है।
पैसे वाले सब कुछ जीत लेते हैं
हारने वालों से
उनकी सौभाग्याकांक्षिणी का ब्याह
होता है जहाँ क्वाँरी अधेड़
लड़कियों का अंधकार भटकता है
वे दयालु और धर्मात्मा होते हैं उनकी
आत्मतुष्ट हँसी में
सोने का दाँत चमकता है।
हमें पैसे वाला होना है
हमारे सपनों में पैसा
अर्रा कर आता है बिल्डिंग बनती है
दान पुण्य होते हैं बड़े रौशन मकान में
सामानों के सैलाब उमड़ते हैं
जिन्होंने अपमान किया था कभी वे
हा-हा करते हैं कृपाकांक्षी
हम उन्हें अभय देते हैं सदय!
बहुत सारा पैसा कहाँ से आए!
लोगों के पास कहाँ से
आ जाता है!
कहाँ घुस पड़ें और दोनों हाथों
लूट लें! किसे मार डालें!
कोई धनी विधवा मोहित हो जाए
इमारतों कारख़ानों फ़ार्महाउसों
ज़ेवरातों के साथ वह
समर्पित हो जाए और हम उसकी
आलीशान बालकनी में
खड़े होकर वह दृश्य देखें
जिसमें हम भी हों उझक कर देखते हुए!
जुआ खेलें अरब के शेख़ों से
करोड़ों झटक लें
कहीं से भारी मुआवज़ा मिल जाए
लॉटरी निकले डरबी की
ज़मीन से ख़ज़ाना निकल आए।
एक उम्र होती है प्यारी
जब हम पैसे को लात मारते हैं
फिर पता नहीं चलता कब
आह भरते हैं और कहते हैं
पैसे ने मार डाला
कमज़ोरी आ जाती है और चापलूसी
भरी जेबों पर ध्यान जाता है
किसी का खुलता पर्स देखकर
कनपटी लाल हो जाती है
तिजोरियाँ मज़बूत लगती हैं अगम्य
हम सोचते हैं किसी अरबपति
की जान बचाने के लिए कहीं
जान पर खेल जाएँ
फिर वह हमें करोड़पति बना दे
नदी किनारे कंकड़ों में ऐसा हीरा
मिले कि बंबई के सारे जौहरी
बिक कर भी उसे ख़रीद न सकें
फिर वह अमरीका में बिके
स्वर्णजड़ित नगर के हम स्वामी बनें
अर्धांगनी हमारी स्वर्ग की अप्सरा हो
जो इंद्र के मना करने पर भी
आए और कृतकृत्य हो।
जब हम कहते हैं कि पैसा ही
सब कुछ नहीं
जब हम किन्हीं गहरी चीज़ों में
ध्यान लगाने का उपदेश देते हैं
तो बच्चे जो हमारी लालच को
जानते हैं उनके शर्मसार चेहरे उनके
चेहरों में छिपते हैं
ऐसी हमारी ज़िंदगी
ऐसी हमारी प्यास है
हम सोचते हैं कोई क्या कहेगा।
- पुस्तक : नींद से लंबी रात (पृष्ठ 41)
- रचनाकार : नवीन सागर
- प्रकाशन : आधार प्रकाशन
- संस्करण : 1996
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