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राष्ट्रवाद

rashtravad

राजेश राजभर

राजेश राजभर

राष्ट्रवाद

राजेश राजभर

और अधिकराजेश राजभर

    तुम अलख जगाओ ‘राष्ट्रवाद’ की

    न्याय नीति की—‘नव प्रभात’ की

    नवचेतना जाग्रति होगीं—

    जन-मानस हुँकार भरेगा,

    भारत नव निर्माण के पथ पर,

    क़दम-क़दम पर साथ चलेगा!

    बटकर-कटकर मिट् जाओगे

    इतिहासों के पन्नों से,

    देश,धर्म नहीं, लाज बचेगी

    चढ़ते ‘चील’ फत्तिगों से!

    आखेटक की आँख अधर्मी—

    खँड-खँड तुम बिखर जाना,

    बच्चा-बच्चा-सच्चा सेवक—

    वतन तुम्हारा क्या घबराना

    तुम अलख जगाओ ‘राष्ट्रवाद’ की

    भाषाई मतभेद, सुलगता—क्षेत्रवाद

    गहरी साजिश-अवसरवादी खेल रहे

    ख़ाक हुई लाखों, मड़ई अमराई,

    बेकसूर विरह वेदना झेल रहे...!

    कायरता का कफ़न उतारो,

    अपने शीश मुडेरों से—

    सीना तान चढ़ा प्रत्यंचा

    लोहा ले गद्दारों से—

    उठकर, प्रतिकार हार की...!

    तुम अलख जगाओ ‘राष्ट्रवाद’ की

    भयभीत-भाव की चिंगारी

    निश्चय ही जलाती घर अपना,

    क़दम बढ़ा नित नई राह पर

    आशाओं के दीप जला

    कर्त्तव्य पथ की ओर निकल

    सिंहासन भी डोल उठेगा,

    साहस सत्य-सबल होकर—

    जय-जयकार बोल उठेगा...!

    तुम अलख जगाओ ‘राष्ट्रवाद’ की

    न्याय-नीति की, ‘नव प्रभात’ की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश राजभर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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