नई प्रेमिका के लिए

nai premika ke liye

निखिल आनंद गिरि

निखिल आनंद गिरि

नई प्रेमिका के लिए

निखिल आनंद गिरि

और अधिकनिखिल आनंद गिरि

     

    एक

    संसार की सबसे मुलायम तस्वीर मेरे हाथ में है 
    बाईस प्रेमिकाओं का आकर्षण है उसमें
    कोई आग्रह नहीं फिर भी
    मैं रात भर उसके करवट बदलने का इंतज़ार करता हूँ
    वह सरसों के तकिये पर आसमान से बतियाती है
    एक निर्दोष हँसी हँसती है मुझ पर
    कि उसे दे पाया नरक-सी ही दुनिया
    अपनी पवित्र उँगलियों से कोई रेखाचित्र बनाती है हवाओं में
    शायद काट रही है दुनिया का घिसा-पिटा नक़्शा
    रच रही है अपनी अलग दुनिया
    जिसे पढ़ने के लिए बरसों-बरस करनी होगी साधना
    बरसों-बरस डूबना होगा प्रेम में।

    दो

    अथाह दर्द को चीरकर
    यह मेरा ख़ून है जो शक्ल लेता है
    दुनिया को निर्दोष, अबोध शक्ल देता
    कोई अलौकिक घटना नहीं यह
    होता आया सदियों से
    फिर भी लगता है
    अभी-अभी जीवन को महसूस किया है
    अपनी हथेली पर
    अगर हम आज से पहले जी रहे थे तो 
    यह सरासर झूठ था
    जीवन जितना मुलायम सुना
    अभी-अभी देखा है एकदम पहली बार।

    तीन

    रात के आख़िरी पहर
    दो बजकर सैंतीस मिनट पर
    देवता करते हैं रखवाली रातों की
    जो सो रहे होते हैं
    मीठे सपने घोलते उनकी नींदों में
    जगती आँखों में उम्मीद भरते शायद
    और अँधेरी रातों में जो भूल चुके होते हैं 
    रोशनी का चेहरा 
    हमारी-तुम्हारी जैसी आँखों में 
    नया उजाला भरते

    यह उजाला साँस लेता है
    जैसे सृष्टि ऊर्जा भरती हो धमनियों में
    इस उजाले की आँखें हैं
    जैसे रातों के देवता गूँथ गए हों मणि अपनी
    इस उजाले को एक नाम दूँगा दीए-सा
    टिमटिमाता रहे हर अँधेरे कोने में
    अथाह संभावनाएँ लिए।

    चार

    मैं नहीं
    तुम नहीं
    जीवन नहीं
    जो था
    जीवन का भ्रम था
    दुनिया नहीं
    दुनिया का भ्रम था
    प्रेम नहीं
    प्रेम का भ्रम था

    मैं शर्तिया कहता हूँ
    ये घनी अँधेरी रात नहीं
    रात का भ्रम है
    यह दरअसल उजाले की शुरुआत है
    जो मेरी आँखों में साफ़ पढ़ा जा सकता है
    हथेलियों पर महसूस किया जा सकता है
    सब कुछ ख़त्म हो चुका है
    या हो रहा है
    यह भी एक भ्रम था
    इस नन्हे समय के टुकड़े के साथ
    जिया जा सकता है पूरा जीवन
    फिर से।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निखिल आनंद गिरि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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