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मूरख

murakh

अनुवाद : रमेश कौशिक

मेरे दोस्त

ख़तरा है घोड़े की पिछाड़ी से

गाय और बैल की अगाड़ी से

किंतु एक मूरख से

सारे दृष्टिकोणों से

ऊपर से नीचे तक

ख़तरा ही ख़तरा है

जब कभी किसी मूरख को

ऐसी जगह पर बिठा दिया जाता है

जहाँ अधिकार था

किसी समझदार का

तेज़ से तेज़ आँख को

मूरख की असलियत

जल्दी ही जान लेना बहुत कठिन होता है

मूरख कुछ समय को वाक्-पटु

और सभ्य बन सकता है

पुरानी पशुता को

बिल्कुल छोड़ सकता है

अच्छा लिख सकता है

और बोल सकता है

सचमुच प्रभावशाली गूँगा बन सकता है

मेरे दोस्त

एक मूरख अकेला ही

केवल एक पल में

कर सकता है गड़बड़ी इतनी

जिसको बुद्धि बल से

या कि निज धीरज से

ठीक-ठाक करने में होंगे लाचार

आदमी हज़ार

किंतु हम यहाँ

सामान्य-नियम का उल्लेख करते हैं

ताकि बुद्धिमान उसका अनुगमन करें

मूरख से डरने के कितने ही कारण हैं

किंतु एक मूरख मज़ाक़ से डरता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 204)
  • रचनाकार : सेर्गेई मिख्लकोव
  • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
  • संस्करण : 1975

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