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मुलाक़ात

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सुदीप सोहनी

अन्य

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सुदीप सोहनी

मुलाक़ात

सुदीप सोहनी

और अधिकसुदीप सोहनी

     

    नवीन सागर के लिए

    नवीन सागर 
    यह नाम मैंने कितनी बार पुकारा होगा 
    और हर बार इस नाम ने ज़ेहन में एक तस्वीर बनाई
    जब-जब भी किसी ने ज़िक्र किया तुम्हारा 
    मैंने महसूस किया कि 
    रोशनपुरा के चौराहे पर जहाँ उतार से
    बाणगंगा की तरफ़ को जाते हैं

    उस ढलान पर 
    एक स्कूटर पर बैठे 
    तुम उतर रहे हो 
    और 
    तुम्हारे बाल उड़ रहे हवा में

    मेरी दोस्त समता और तुम्हारी गुड़िया ने 
    जितने भी क़िस्से सुनाए तुम्हारे 
    मुझे लगा 
    हमारे साथ बैठे तुम भी उन्हें सुन रहे,
    मुस्करा रहे पर बोल नहीं रहे

    वह जब कहती 
    कई दिनों तक तुम किसी उदासी से अकेले लड़ते 
    तो किसी गवर्नमेंट क्वाटर के किसी कमरे में
    तुम्हें देख लेने की ललक में परेशान हो 
    मैं उन सब गवर्नमेंट क्वाटर के कमरे देख आता 
    जो मेरी स्मृति में हैं

    कोई जब कहता 
    कि सालों पहले की बात है
    हम सब खड़े थे और 
    हमारे बग़ल से नवीन गुज़रे
    तो हर बार मैंने तुम्हारे बग़ल से
    गुज़र जाने पर तवज्जो दी 
    लगा तुम गुज़र न रहे, वहीं खड़े हो

    मैं जानना नहीं चाहता 
    किन षड्यंत्रों के शिकार हुए तुम
    या तुम्हारी क्या कमज़ोरियाँ रहीं 
    मगर हर बार तुम्हारी कविता ने 
    मुझे तुम्हारे होने के एहसास से भर दिया 
    (शब्द पर मेरा भरोसा हमेशा रहा है)

    तुम्हारी मृत्यु के लगभग पंद्रह वर्षों बाद मैंने जाना 
    कविताओं में तुम कह गए थे 
    जिसने मुझे मारा उसे सब देना, मृत्यु न देना

    तुम इस कविता को कैसे लिख सके 
    यह मेरे लिए हर बार अचरज भरा रहता है

    स्रोत :
    • पुस्तक : मंथर होती प्रार्थना (पृष्ठ 151)
    • रचनाकार : सुदीप सोहनी
    • प्रकाशन : सेतु प्रकाशन
    • संस्करण : 2023

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