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मुखौटों की स्तुति

mukhauton ki stuti

अनुवाद : सुरेश सलिल

लियोपोल्ड सेडार सेंगोर

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लियोपोल्ड सेडार सेंगोर

मुखौटों की स्तुति

लियोपोल्ड सेडार सेंगोर

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    मुखौटो! हे मुखौटो!

    काले मुखौटे, लाल मुखौटे, अश्वेत और श्वेत मुखौटो,

    आयताकार मुखौटो, आत्मा जिनसे साँस लेती है,

    मैं ख़ामोशी से तुम्हारा अभिनंदन करता हूँ।

    और, तेंदुए के सिर वाले मेरे पूर्वज, तुम्हारा भी।

    तुम इस जगह की रखवाली करते हो

    जहाँ किसी भी औरत की हँसी, किसी भी मानवीय मुस्कान पर

    पाबंदी है।

    यहाँ, जहाँ मैं खींचता हूँ अपने भीतर अपने पिताओं की प्राणवायु,

    तुम पारलौकिक जीवन का वायुमंडल शुद्ध करते हो।

    हे झुर्रियों और गड्डों से मुक्त, मुखौटाहीन चेहरों के मुखौटो,

    इस प्रतिरूप की रचना तुमने की है

    मेरे इस चेहरे की, जो सफ़ेद काग़ज़ की वेदी पर झुका है।

    अपने प्रतिरूप के नाम पर; मुझे सुनो!

    अब जबकि तानाशाहियत का अफ़्रीका मर रहा है—

    यह विषाद एक दयनीय राजकुमारी का है

    ठीक यूरोप की भाँति, जिससे जुड़ी है उसकी नाभि-नाल,

    अब घुमाओ अपनी स्थिर आँखें अपने बच्चों की तरफ़

    जिनका आह्वान हो चुका है

    और जो अपने जीवन का उत्सर्ग वैसे ही करते हैं

    ग़रीब आदमी जैसे अपनी अंतिम पोशाक का,

    ताकि भविष्य में, विश्व के पुनर्जन्म पर, हम चीख़ सकें ‘यहाँ’,

    ख़मीर के बतौर, जिसकी मैदे को ज़रूरत होती है।

    अन्यथा और कौन है जो दुनिया को सिखा सके वह लय

    जो मशीनों और तोपों के बीच मर चुकी है?

    और कौन उछाल सकता है ऐसी प्रफुल्ल किलकारी

    जो एक नई भोर में मरे हुओं को और ज्ञानियों को जगाए?

    कहो, और कौन है जो निराश लोगों को लौटा दे सके जीवन की स्मृति?

    वे हमें कुंदजेहन, भूरा और चीकट आदमी कहकर पुकारते हैं

    वे हमें यमदूत कहकर नवाज़ते हैं।

    किंतु हम वे नर्तक हैं, पैरों में जिनके तभी जोश आता है

    थिरकते हैं जब वे कड़ियल ज़मीन पर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 211)
    • रचनाकार : लियोपोल्ड सेडार सेंगोर
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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