मुझमें नदी बहती, मैं उसके किनारे नहीं
mujhmen nadi bahti, main uske kinare nahin.
प्रवीण पण्ड्या
Praveen Pandya
मुझमें नदी बहती, मैं उसके किनारे नहीं
mujhmen nadi bahti, main uske kinare nahin.
Praveen Pandya
प्रवीण पण्ड्या
और अधिकप्रवीण पण्ड्या
मुझे तटस्थ कहने का दुस्साहस करते ओ बड़बोलो!
नदी में उसकी मँझधार में तिरता
धारण करता हूँ समग्र धारा
और पूरी नदी को
अपने भीतर।
हे क्षीणनेत्रो!
चपलता से लपलपाती है जीभ तुम्हारी,
क्योंकि तुम किसी एक तट पर हो,
तुम-सब में न नदी है और न तुम लोग नदी में।
नदी में जो है,
वह लालसा है तुम्हारी।
मेरी भी कोई जीने की कोई प्रचंड दृष्टि है।
अपनी ध्वनि का
कोई भी जब चाहें, भोंपू बनाकर बजा दें मुझे,
यह स्वीकार नहीं कर सकता।
कौन कब बोलें
और किस तरह बोलें,
यह तय करने वालो ओ बधिरो!
मैं चुप्प नहीं,
सुनो...।
- रचनाकार : प्रवीण पण्ड्या
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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