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मुइल जीवन

muil jivan

हंसराज

अन्य

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हंसराज

मुइल जीवन

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और अधिकहंसराज

    पड़ाइत छी, पड़ायल चल जाइत छी

    हमरालोकनि अपना लेल अपनासँ,

    अपन परिवार, घर-आङन, गाम-नगर,

    अपम देश कोशसँ पड़ायल चल जाइत छी हमरालोकनि।

    हमरालोकनि बेचि लैत छी एक चुटकी नोनक खातिर

    जीर-मरीच-धनी, मरिचाइक बराबरि,

    सागक दोबर, भाँटाक डेढ़िया,

    बेचि लैत छी अपन अस्तित्वकेँ अपना लेल;

    आ, गरदनिमे दसटा पजेबा, डाँरमे मनुख भरिक उक्खड़ि,

    पयरमे मोन-दस मोनक बटिखारा बान्हि,

    हाथमे हथकड़ी, जिह्वापर काँटी, जाबी लगाकऽ मुँहपर;

    अतल जल-राशिमे कूदिकऽ पड़ा जाइत छी।

    पड़ा जाइत छी हमरालोकनि अपनासँ

    आ, अपनहिमे बौआइत छी—गामक हाट नगरक बाजारमे

    करैत छी चीत्कार जन-कल्लोलक तरंगमे,

    तकैत छी अपन आकृति

    मिलक चिमनीमे, चकचौन्हीमे फूटल आँखियेँ,

    पीबिकऽ भरि बोतल।

    देखैत छी इनार-पोखरिमे डुबैत युवतीकेँ

    अपन सखी-बहिनपासँ चोराकऽ,

    पड़ाइत युवककेँ गामसँ पटना कलकत्ता।

    भा, पड़ाइत छी, पड़ायल चल जाइत छी हमरालोकनि

    ठाढ़ भेल जीबा लेल

    आ, जीबैत छी हमरालोकनि मुइल

    मुइल आ, मरैत छी जीविते।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 75)
    • संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
    • रचनाकार : हंसराज
    • प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, सुपौल, बिहार
    • संस्करण : 1971

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