कावेरी का तटवर्ती प्रदेश

kaveri ka tatvarti pardesh

पी. नारायण नायर

पी. नारायण नायर

कावेरी का तटवर्ती प्रदेश

पी. नारायण नायर

और अधिकपी. नारायण नायर

    किसानों की समृद्धि के लिए जब यह नदी, संपूर्ण फल की प्राप्ति के

    उद्देश्य से, मातृभूमि की अनेक कामनाओं को इकट्ठा करके वितरित करती है,

    तब निष्क्रिय बने रहना कहाँ की धार्मिकता है?

    अपने से निकले हुए पय (दूध, जल) से वह सब जीवों का अपने

    पुत्रों की तरह पालन करती है। वह केवल अंगो का पोषण नहीं करती,

    बल्कि पापों को भी नष्ट करती है।

    लोगों को इस नदी का अति विस्तीर्ण तट दृष्टिगोचर हुआ, जो नाना

    प्रकार के धानों से हरा-भरा होने के कारण आँखों को सुंदर लगता था

    तथा जो कावेरी जल से सींचा जाने के कारण समृद्ध था।

    फलों से झुके हुए तथा अपने पत्तों को त्यागने के इच्छुक आम्र आदि

    प्रमुख वृक्ष ज्ञानी बनकर प्रणाम करते हुए अपनी मातृभूमि को प्रसन्न कर

    रहे हैं।

    कावेरी के पवित्र जल का पान करने के कारण फलों से परिपूर्ण ये

    ऊँचे केर के पेड़ खड़े हैं। संसार में ये उदार वृक्ष, जड़ होने पर भी,

    विष्णु-पद प्राप्त करके, भव्य गति के भागी बनते हैं।

    रसों में अग्रगण्य (माधुर्य) रस को उत्पन्न करने वाली यह विस्तीर्ण

    गन्नों की वाटिका सुशोभित हो रही है। अपने नए निकले कोमल दंडो से,

    जिनके अग्रभाग पुष्पों से खिले हैं, वह निरंतर समृद्धि से युक्त है।

    खेतों की पंक्तियों में पके हुए धान, हवा से हिलकर झुकने वाली

    अपनी बालों से, इस कोवल (प्रदेश) की आराधना क्या यह सोचकर कर रहे

    हैं कि वह एक दिन पृथ्वी का स्वामी बनेगा?

    धान की बालों के गट्ठर उठाई हुई युवतियाँ तथा सुरा पीकर प्रसन्न हुए

    किसान, स्वरों में कोयल बनकर लीलापूर्वक चल-फिर और नाच-गा रहे हैं।

    लता-पौधों की पंक्तियों में चारों ओर रंग-बिरंगे फूल दिखाई दे रहे

    हैं; पक्षि-श्रेणियों की, जिनमें कोयल प्रमुख है, मधुर चहचहाहट सुनाई दे रही

    है; शरत्कालीन बादलों के समान कांति वाली शुभ्र गौएँ गोचर-भूमियों में ले

    जाई जा रही हैं, तथा ग्वाले मधुर बंशी बजा रहे है—इस प्रकार यहाँ ऐसी

    क्या वस्तु है, जो हृदय को आकर्षित नहीं करती?

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 701)
    • रचनाकार : पी. नारायण नायर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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