मोल-भाव

mol bhaw

रामजी तिवारी

रामजी तिवारी

मोल-भाव

रामजी तिवारी

और अधिकरामजी तिवारी

    कहाँ है बचकर निकलना

    कहाँ करना है मोलभाव,

    जीवन की बिसात पर

    सोच-समझकर धरना है पाँव।

    कितना बचेगा

    रिक्शेवाले की पीठ पर

    उभरी नसों को थोड़ा कम आँक कर,

    ठेले वाले के पसीने में अपने उभरे अक्स को

    थोड़ा कम झाँककर।

    कितना बचेगा

    पाँच लौकी और दस किलो तरोई लेकर

    सड़क के किनारे बैठने वाले से भाव तुड़ाकर,

    छाया के लिए दिन में तीन बार

    जगह बदलने वाले मोची से

    पालिश में दो-चार रुपए छुड़ाकर।

    कितना बचेगा

    प्रेस करने वाले से

    पचास पैसा प्रति कपड़ा कम कराकर,

    और चौका-बर्तन करने वाली की पगार से

    पचास रुपए महीना कम कराकर।

    उन सबसे जो सब्ज़ी में नमक भर कमाते हैं,

    और उसी में अपने परिवार की गाड़ी चलाते हैं।

    नहीं-नहीं

    मैं अफ़रात के नहीं लुटाता हूँ,

    वरन मैं तो

    बचाने का हर नुस्ख़ा जुटाता हूँ।

    मसलन धनतेरस में

    यदि मैं तनिष्क वाले से बच गया,

    पिज्जा और मैकडोनाल्ड की जगह

    सप्ताहांत घर में ही जँच गया।

    मैं यदि बच गया नवरात्र में पुजारियों के जाल से,

    बारह महीने में चौबीस भखौतियों के भौंजाल से।

    शहर के हर कॉर्नर वाले प्लाट पर लार टपकाने से,

    और एक दूसरे को कुचलकर बेतरह भाग रहे ज़माने से...

    तो खुला रख सकता हूँ

    दस-बीस ज़रूरत वाले हाथों के सामने

    आजीवन अपना हाथ,

    और हिसाब लगाने पर पाऊँगा

    कि अंततः फ़ायदे ने ही दिया है मेरा साथ...।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामजी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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