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हाय राम का करी

haay raam ka kari

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

और अधिकश्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

    हमारि अपनि पहचानि का

    हमरी रीतिन का

    रिवाजन का

    जुगाधिन का हाता हमार

    सब वहु तोरि दिहिसि

    वहि मा धरी चकिया-चूल्हा

    मूसरु, गाली, सिल

    सब वहु फोरि दिहिसि

    बाबा केरे हाथ केरि

    लिखी दसम धरी रहइ

    बकस ते फेंकि दिहिसि

    गुलसननंदा की कथा-कहानी

    वहिमा भरि दिहिसि।

    हाहाहूती घरु हमार

    सिर्फ याक कोठरी मा

    पुरिखराज

    पंडित बाबा रहति रहइँ

    दसम रोजु बाँचचि सुनावति रहइँ

    उनका लात मारि

    देहरी ते निकारि दिहसि

    अपने मन क्यार

    'गिटि-पिटि' पढ़ा लरिका एकु

    वहे मइहाँ राखि लिहिसि

    हमते कहति रोजु वाटइ देउ

    फिलमीं सितारेन का,

    सूरज-चाँद बइठ जहाँ

    नेहरू-पटेल अस

    हुवाँ अब नाचु होई?

    अम्मा कहति रहइ

    जब ते वकील भवा

    मम्मी कहइ लाग

    रात-दिन भौंकति रहइ

    देसी कुतवा हमार

    वहि का भगाइ दिहिसि

    कुतिया विलयती याक

    संघइ स्ववावइ रोजु

    हाय राम का करी

    स्रोत :
    • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 83)
    • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
    • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
    • संस्करण : 1991

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