मेरे गाँव के कुत्ते

mere ganw ke kutte

ऐश्वर्य राज

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मेरे गाँव के कुत्ते

ऐश्वर्य राज

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    एक

    दुआर पर बैठे नंगे बच्चे से
    सटकर बैठा है कुत्ता
    घास गढ़कर अभी-अभी लौटी माँ
    बच्चे को उठाती है
    पुचकारती है
    पल्लू की एक तरफ़ से
    पोंछती है उसकी नाक
    दूसरे तरफ़ की गाँठ खोल
    निकालती है एक सुखी चिमड़ाई रोटी
    रखती है कुत्ते के आगे

    दूर से देखकर
    बच्चे की बहती नाक
    औरत के जट्टा लगे बाल
    वे कुछ सरकारी
    ग़ैरसरकारी स्कीमें
    रखकर ज़मीन पर
    अपने कुत्ते के साथ
    मोटर गाड़ी में बैठ
    दूर से ही लौट जाते हैं।

    दो

    उस रात कुत्ता बहुत रोया
    अलग-अलग आवाज़ें निकलता रहा
    उस रात घर का बूढ़ा
    कँपकँपा कर मरा था।

    तीन

    कुत्ते हिल-मिल जाते हैं
    उन बच्चों के साथ
    जो उनके साथ खेलते हैं
    पकड़ते हैं उसकी पूँछ
    लेकिन उसे खींचते नहीं हैं
    जैसे चिढ़ाते हैं एक दूसरे को
    अलग-अलग नाम बनाकर
    चिढ़ाते हैं वे उसे भी
    इस प्रक्रिया में कुत्ता हँस नहीं सकता
    न लड़ सकता है
    न कर सकता है शोर
    और न हुड़दंगबाज़ी—जैसे बच्चे करते हैं
    इसलिए बच जाता है—
    झुँझलाई माँ की डाँट से।

    चार

    कुछ लड़के जो ट्यूशन पढ़ने
    शहर जाते थे
    उन्होंने दिया कुत्ते को
    एक अँग्रेज़ी नाम—
    ‘हनी’

    हनी की सात पुश्त पीछे
    और लड़कों की सात पुश्त पीछे
    किसी को नहीं मिला था कभी
    अँग्रेज़ी का/से कुछ भी

    हनी अगर इंसान होता
    तो फूला न समाता!

    पाँच

    कुत्ते के हिस्से की रोटी
    आज नहीं बनी है
    कुत्ते के लिए रोटियाँ
    कभी नहीं बनतीं

    उसे मिल जाता है खाना
    उसके हिस्से का
    जो महीनों पहले चला गया परदेश
    मजूरी करने।

    छह

    बाबू साब की कुर्सी से
    एक हाथ की दूरी पर
    बबूल शरीर लिए पति-बेटे
    बैठे हैं चुकु-मुकु
    मिट्टी की दीवार की दूसरी तरफ़
    पकड़े ख़ाली लोटा
    खड़ी है स्त्री

    कुत्ता
    बाहर लगी गाड़ी को
    पहले सूँघता है
    फिर टायर पर मूत देता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऐश्वर्य राज
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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