उफाँटि
हमर ई घर
विशाल गाछक छाँह सन लगैत अछि हमरा
एतऽसँ बेसी शीतलता कतहु नहि पबैत छी हम
कतहु नहि।
जखन प्रसन्न होइत छी
तँ नचैत छी पाँखि पसारि
मयूर सन
एही घरमे
आ, दुखक क्षणमे
बाथरूममे पैसि
जखन कतोक-कतोक बेरधरि कनैत रहैत छी
तँ मोनकेँ बान्हबो करैत अछि यैह घर।
मुदा सभसँ नीक तखन लगैछ
जखन हम अपन पुत्रकेँ
परबोधैत आ सुनबैत छी—
चन्ना मामा आ रे आ
रस कुसियार ला
केराक भार ला
शक्कर घोरी
दूध कटोरी
बौआके मुँहमे घुटुक...
ओ चिहुँकि उठैछ—
मम्मा! यह क्या सुनाती हो?
गन्दा...वेरी बैड...
वो वाला सुनाओ न
झलक दिखला जा...
तखन अपन एहि घरक देबाल सभकेँ
तोड़ि देबाक मोन होइत अछि
मोन होइत अछि देबालमे ठोकि ली कपार
देबाल दिस एकटक तकैत रहैत छी हम
अपन सासु-ससुरक फोटो दिस
लगैछ, जेना ओ दुनू कहैत छथि—
आब कनने वा माथ ठोकने की?
जेहने बाउग करब, तेहने ने काटब।
आ हम मैथिली गीतक सी.डी. ताकऽ लगैत छी।
- पुस्तक : गेल्ह सब झाड़ैत अछि पाँखि (पृष्ठ 25)
- रचनाकार : मेनका मल्लिक
- प्रकाशन : चतुरंग प्रकाशन
- संस्करण : 2017
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