ध्यान में घड़ियों का
खुजली का, लिखने का
हाथों के पसीने का
झरने-बनने के सूक्ष्म निवेदन का
पन्ने पलटने का
बाहर बैठी मैना के पंखों के बीपीएम गिनने का
उससे अपनी साँस, तेज़ और तेज़ मिलाने का
निषेध है अक्सर
निषेध है मुझसे घंटों लिपटी घड़ी के सहारे,
मेरा कान लगाए रखना अपनी नाड़ी पर भी,
कम रूठना दुनिया से,
कम महसूस करना प्रेम-अभाव भी
धूप पढ़ती मेरी छाती पर
दीवारों की स्पष्टता से होते,
उठने का समय क़रीब आता शायद
मेरी गर्दन के सबसे पुराने और सबसे परिचित तिल,
मेरी वह सबसे पुरानी दोस्ती
जिसमें मेरे जीवन के सभी विरोधाभास पाते सहमति
वहाँ खुजली—दुपहर की आधी नींद का समय शायद
मेरी रीढ़ की सँभाली पीठ से होता वही एक बिंदु,
उठता दर्द, उसी एक जगह जहाँ,
मेरा हाथ और मन दोनों असक्षम—
दो बजकर दस मिनट
फिर जब बिल्ली जैसे सावधान
अपरिचित पाँव खोलते खिड़की
सुनने के लिए वह सब
जिसे छूने का समय निरंतर बीता जा रहा
निश्चितता : सूर्यास्त तो हो ही गया होगा,
निश्चितता: ईश्वर के लिए न सही,
संध्या के लिए तो प्रार्थना की ही थी मैंने
मेरे पेट-तल तक पहुँच सकने वाला
पाँचवाँ कथित घूँट
मोटर चलाने का समय शायद
फिर जब मेरी जाँघें मुझसे करने लगती हैं
दुनिया भर के सबसे निरर्थक सवाल,
सबसे बेतुकी माँगें
अब आठ बजने को होंगे शायद
फिर जब कमरे में जमा पर्दे
परिवर्तित होने लगते आवरण रूप
संरक्षण का भार
उतार लेते अंगड़ाई
बदलने लगते रंग
आसन बन जाते अपनी ही परछाईं जितने लंबे—
मोटे-गाढ़े-अनुशासनहीन,
ताकते तारों को,
आराम के पुनराग्रह से होती नींद
सोने का समय
कविता से ज़्यादा ज़रूरी समय,
ध्यान से भी ज़्यादा,
डूबने से शायद थोड़ा कम,
दस ही मिनट केवल।
- रचनाकार : रिया रागिनी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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