हिमयोग

himyog

विंदा करंदीकर

और अधिकविंदा करंदीकर

    1

    वे यात्री उग आए किनारे पर

    अपनी ही त्वचा का लेकर ताम्रपट वे यात्री उग आए किनारे पर।

    तब सूर्य गया था बादल ओट। पेलिकन पंछियों ने संभाल लिए

    अपने-अपने चोगे, शुभ्र पाजामे। बेनामी पेड़ों ने पूछे प्रश्न एक-दूसरे से निष्पर्णता में। सिर्फ़

    समझा था बाकी बर्फ़ ने असली मामला!

    क्योंकि उसी ने तो महसूसा था आगंतुकों के तलवों का जलता स्पर्श, बिवाइयों का भाग्य।

    वे यात्री पधारे किनारे पर, तब भाटे का समय होने पर भी कुछ ठहरा था ज्वार का जल (बूझा

    था यात्रियों ने)

    शेष स्मृति का एक सिक्का उन्होंने रखा था ज्वार के हाथ पर समुंदर को ‘टिप’ देने के लिए।

    फिर धीरे-धीरे वे लगे भविष्य के उद्योग में, कर्मठ-संकल्पशील

    एक हिलमिल गया पेलिकन पंछियों में ताकि पंख फूटें, ज़मीन से अंकुरित होने के लिए

    दूसरा हो गया शामिल पेड़ों में, तीसरा चीख पड़ा, प्रेषित होने का आकांक्षी

    ‘फटे पाल की हो जाती हैं लंगोटियाँ, वैसे ही झंडे भी’

    पाँचवें ने मारी छठवें के बाल की जूएँ सोलह सौ बीस!' लेकिन समर्थों ने उद्योग के पहले

    जमा की चिप्पियाँ, जलाए चूल्हे, जिनमें से उगे परंतप सूर्य!

    2

    कठिन होता है विदेश में पहुँचना

    इन निष्पर्ण वृक्षों की छाया भी अगर गिरी मेरे शरीर पर

    तो शरीर से फूटेंगे पत्ते सिर्फ़ कटहल के, इसकी नहीं की थी मैंने कल्पना भी;

    नहीं थी कल्पना कि चुभती हवा बताएगी ख़बरें आम्र-बौर की,

    नहीं थी कल्पना कि यहाँ पार्थिव को फलाएगी बर्फ़, और उगेगा

    इस बर्फ़ में वह हिरण्यगर्भ, सतलज के परे का।

    नहीं थी कल्पना कि चार हज़ार मील पार करके भी मैं आख़िर

    पहुँचूँगा सिर्फ़ अपने ही देश में, बहती होगी गंगा ही मिसीसिपी में;

    होंगे उसी के दो हाथ शस्त्र-द्वीप को आलिंगन में कसने वाले।

    कितना कठिन होता है विदेश पहुँचना, बिना त्याग किए स्वदेश का।

    जेनेसिओ में फादर हैग्ली के घर के सामने वाले गमले में

    मुझे प्रतिभासित हुआ तुलसी-वृंदावन, और रात के स्वच्छंद नृत्य में

    मुझे प्रतिभासित हुई अनेक गोपियाँ अनेक कृष्णों के साथ रास-क्रीड़ा करती हुईं

    तब हुआ हक्का-बक्का! कितना कठिन है पहुँचना विदेश में

    देहरी से फूटी मथुरा की पगडंडी होती है कभी समाप्त होने वाली अतलांतिक को लाँघकर भी।

    3

    नग्न शरीर से बर्फ़ से चिपकने पर

    स्ट्रिपशो में एक-एक चिंदी बनती है द्रौपदी, उसी विवशता में सितंबर में

    फेंके पत्ते इन वृक्षों ने निर्वस्त्र होते समय, और अब दिसंबर की शाखा पर

    क्वचित कहीं रह गया है एकाध अंतिम तृसुपर्ण अवधूतपन का धूप जलाने वाला

    अब सब हो गए हैं मृत्युंजय, खो गए चिह्न हरेपन के नाम के;

    चले विराट की तरफ़ वैराट की राह से; दिखाते नाथ-मुद्रा : आकाश को झाड़ने वाली।

    उल्टे झाडू की। बर्फ़-स्पर्शित हवाएँ फरसे की धारवाली लगी झिंझोड़ने,

    लगे घोलने जैज़ की लय आदिम महाप्राण में : ऊं, हृं, हीं, हूं...

    यहाँ प्रकृति को संन्यास लेते समय भी चाहिए होता है विधि का वैभव, इस भोग भूमि में।

    लेकिन इसी बर्फ़ के स्पर्श से मैं आया पुनः होश में।

    और आज पहली बार तेज़ ठंड में भी मुझे लगे कपड़े बोझ-से, फिर उनका भार उतारने पर

    वस्त्रों के नीचे वाली मेरी त्वचा

    मुझे लगी कपास के गोत्र वाली। आया कोई पाल खोलकर

    ध्रुव की दिशा में, लगा सुनाने बर्फ़ के फर्मान, हुआ सजग 'हाज़िर' कहकर

    नग्न शरीर से बर्फ़ चिपकने पर, जलती है चिनगारी अनोखी अग्नि की।

    4

    एक वक्र हिमयोग

    हिममानव की असली औलाद, ऐसे बच्चे! एक-दूसरे पर

    बर्फ़ बौछार करने वाले, बर्फ़ से हुड़दंग मचाने वाले, बर्फ़ में पटका खाने वाले

    बर्फ़ नेत्र, बर्फ़-गात्र, बर्फ़-मत्त, बर्फ़ के बर्फ़ से भी अधिक।

    बर्रफ़...। बर्रफ़... बर्रफ़ से बिदके पेड़ों के कंकाल 'शेक' ने सुलगाए,

    अंधड़ के उकसाने पर अस्थिनृत्य करने वाले, अपनी ही शव-पेटिका से

    बाहर आकर उसी शव-पेटिका पर विकट नृत्य करने वाले प्रेतों के जमघट की तरह

    बरफ़। बरफ़। बरफ़ थकी-माँदी चर्च की सीढ़ियों पर बरफ़ निरीह

    ठंड से ठिठुरी। बरफ़ पकी हुई घरों के खल्वाटों पर

    बरफ़ लथपथ कीचड़ सने रास्तों पर। बरफ़. बरफ़

    पुनः बर्फ़. बर्फ़ से चूने वाले दो पद-चिह्न किसी एक उध्वस्त आत्मा के

    उस मन की बर्फ़ की हक़ीक़त। उस बर्फ़ पर से स्केटिंग करने वाली

    एक परी पीड़ा, लहूलुहान; बर्फ़ जलती-सी, उसके ठंडे दाग़ जीभ पर।

    एक वक्र हिमयोग। गति के किनारे पर काल-स्तंभन करने वाला;

    द्वैत को डराने वाला, हेनरी मूर के ‘न्यूक्लियर एनर्जी’ को गणपति बनाकर।

    5

    वंश यात्रा के तीर्थ-स्थान देखने का वीज़ा

    मेरे बच्चे, बच्चों के बच्चे, फिर उनके बच्चे, फिर उन बच्चों के बच्चे,

    इस तरह बच्चों में से बच्चे पैदा होते-होते आख़िर एक अटल दिन

    ख़त्म होगी जब ‘बच्चावली’ जड़ की... वह क्षण आता है सामने

    इस बर्फ़ से अनंत की दिशा से और प्रत्यक्ष दूर होकर भी

    उसके पहले ही उसकी छाया आकर पहुँचती है मेरे पैरों तक

    बेर से निकल आने वाले साँप की सहजता से; करती है दंश

    वंश-यात्रा के दशावतारों के हर खेल में, होते हैं अर्थहीन अथर्व पारायण;

    निराकार की एक आँख दिखती है तनी हुई सबके अंत पर;

    मुझे जो दिखता है वह होता है सिर्फ़ उसके अंदर का सफ़ेद भाग बर्फ़-भंगुर

    जिनको दिखी होगी पुतली, पुतली के अंदर की गुड़िया, गुड़िया की आँख,

    आँख की आँख, आँख... आँ... ख... जिनके... जो...

    मेरी जड़ें, जड़ों की जड़ें, फिर उनकी जड़ें, सभी जड़ों की जड़,

    शायद वह जड़ कहाँ उगी और कब वह उनकी भी होगा अज्ञात।

    वंश-यात्रा के तीर्थ-स्थान देखने का वीज़ा होता है सिर्फ़ बर्फ़ के पास।

    6

    घर की यादें

    घर की यादें : दरवाज़े की साँकल की, लगाई लगाई की।

    ग़ुसलख़ाने के साबुन की आदतन ख़ुशबू की, चारों की साँसों की।

    चड्डी के नाड़े का सिरा अंदर फँसने की, गालफूले आँवले की,

    खिड़की पर के कौए की, थर्मामीटर फूटने की, आख़िर गाँठ खुलने की।

    झगड़े की, पड़ोसन के ओखल में राशन का धान कूटने की।

    बटन खोने की, खोने पर मिलने की, मिलकर पुनः गँवाने की।

    बेटा की, थेटा की, झाडू बाँधने की, टूटी काँच जोड़ने की।

    अमचूर के रस्सम की, अचार के खार की, गौर गणपति की।

    आइने पर पड़े तेल के दाग़ की, रूठे-रूठे ग़ुस्से की।

    ‘हम रही भार’ की, ‘सब ढोंग’, वगैरा की ‘पाउडर दिखता है क्या’ की।

    बोतल में फँसे समूचे डाट को निकालने की, हाथ पर परोसने की।

    आशा की, निराशा की, रद्दी में धोखा होने की, संडास बंद रहने की

    गेंद खो देने की, खिड़की के पास निकाले गए कान के मैल की।

    धीमे गहरे जल में नियति की बंसी की। अकेली के बल की।

    7

    क्या षड्यंत्र है?

    वे तीन लोग कानाफूसी करते हुए गए, एक ने दूसरे का हाथ दबाया,

    और तीसरा घोड़े की तरह हिनहिनाया... उस जामुनी पेड़ पर

    फूल खिलने का क्या कारण, वह हिनहिनाया इसलिए, तिरछी आँख का

    दक्षिण की ओर झुका हुआ... तेज़ी से गई उस कार के पीछे से यह समझदार

    पुलिस की कार चल रही है लुक-छिप कर, क्यों रुका इसी क्षण

    वह उसका विलाप-अलाप, दुहाई-दहाड़... लेक मिशिगन पर से

    झलकती जा रही बादलों की छाया दिखी दिखी, तो गई

    पानी में पिघलकर, मेरी आहट लगती है, लगती है इतने में। क्या षड्यंत्र है?

    टाइपराइटर पर वही ग़लती हुई तीसरी बार और 'ए' को गर्दनिया

    देकर वहाँ घुसा एक 'ओ', विस्फारित आँख-सा।

    क्या मर्म है इस घटना का... क्या षड्यंत्र है?

    लगती है ऊपर से इतनी अर्थहीन नहीं होगी यह पगलाहट। नहीं होगा मुझसे

    उनका संबंध, ऐसा मान कर बगलें झाँकने में क्या अर्थ?

    ‘एकोह’ कहने वाला ही अगर हुआ आख़िर में ऐसा ‘बहुस्याम्’।

    8

    वहीं पर सूझा वाहियात प्रश्न

    शिकागो झूठ, लेक मिशिगन सही—लेकिन क्यों? अब बर्फ़ का पानी हो गया है।

    और लोग पानी में घुल गए—लेकिन क्यों? यहाँ नैयायिकों के तीन कारणों को

    अरस्तु के चार कारणों की शह देकर मात देनी चाहिए आदत के शब्दों पर,

    और अपने ही कारण खोजने चाहिए। फिर भी कारण चार प्रकार के ही;

    शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक और आत्मिक। लेकिन शारीरिक पहले क्यों

    और आत्मिक अंत में क्यों? शब्दक्रम भी शब्द की तरह ही फिसलनभरा, प्रचलित

    वह कौन है जिसने देखा चार कारणों के आदि कारण को व्याप्ति का पेट फाड़ कर बाहर आते हुए?

    -लेक मिशिगन के अर्धनग्न किनारे पर अचानक मिला एक क्षण, कारणों के कारण को निगलने वाला।

    वहीं पर सूझा बेहूदा प्रश्न : विवेकानंद टट्टी कैसे जाते होंगे?

    याने यहाँ, शिकागो में? यह कहकर मत भागो कि मामूली प्रश्न है।

    उसी के गर्भ में उपस्थित दूसरे प्रश्नों से दचक गए हो।

    शौच करते समय मन-ही-मन व्याख्यान की रिहर्सल करते होंगे क्या? हमारी तरह? उधर

    परमहंस मुस्कराते होंगे क्या उनके मन के आरोह-अवरोह सुनकर!

    लेक मिशिगन के मीठे पानी को भी ज्वार-भाटा! अरे चाँदमामा, यह तो बहुत हो गया।

    9

    संन्यास की एक विधि

    संन्यास की एक विधि : पहले आत्मा को रखा जाए हथेली पर बुदबुदे की तरह;

    उसकी लंबाई-चौड़ाई ढंग से नापी जाए सूखे दर्भ से दशमलव अपूर्णांक में;

    बाद में उसका वजन किया जाए रत्ती में, ज़रूरत पड़े तो लगाए जाएँ बालू के कण;

    ब्रह्म के साथ बंधी उसकी आंवल हौले से काट दी जाए, भले ही ख़ून निकले;

    फिर उसकी बेचारगी पर धीरे से मारी जाए एक फूँक,

    निर्विकल्प होठों से; जो उड़ जाते हैं वे पक्षी नहीं होते, इसे जाना जाए

    फिर ली जाए एक छलनी आकार से विकारों को छानने वाली;

    और स्वयं भी उसमें बैठे, ज्योति के सामने हिमनग्न होकर

    सभी विधियाँ करनी पड़ती हैं अग्नि के साक्ष्य में; अग्नि की साक्ष्य से

    होते हैं आसव और अरिष्ट आचार-विचारों के और आख़िर

    विधिमुक्त होने के लिए लेनी पड़ती है साक्ष्य राख की, इसे समझा जाए;

    क्योंकि राख भी होता है एक बर्फ़ का ही प्रकार; अंत की पूँछ

    अटकी होती है प्रारंभ के पैर में; उसके टूटते ही

    राख से खिलने वाला एक पंछी उतरता है हथेली पर संन्यासी पर हँसने वाला।

    यात्री : 1620 में अँग्रेज़ी प्युरिटन मेफ्लावर के पग खमाउथ से अमेरिका में बर्फ़ पर उतरे और न्यू इंग्लैंड कॉलोनी स्थापित की। वहाँ उन कर्मठ, संकल्पशील, उद्यमी यात्रियों एवं उनके प्रबल प्रयासों को मिथक और फंतासी के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है (देखिए पाँचवें ने मारी छठवें के बाल की जुएँ सोलह सौ बीस। जलाए गए चूल्हों और उनकी घोर कर्म-शक्ति से ही आगे परंतप सूर्य उगे)

    फादर हैग्ली : रेवरंड फादर हैग्ली जेनेलिओ के मेथॉडिस्ट मिनिस्टर जिनका उदार आतिथ्य कवि को नवंबर 1967 में प्राप्त हुआ था

    शेक : नृत्य का एक प्रकार

    हेनरी मूर के न्युक्लियर एनर्जी को गणपति बना कर : महान शिल्पकार हेनरी मूर ने ‘न्युक्लियर एनर्जी’ नाम से शिल्प बनाया था, जो शिकागो विश्वविद्यालय के परिसर में रखा गया है। एंदिको फर्मी, जो उस विश्वविद्यालय में थे, ने प्रथम सफल अणुविस्फोट किया था। उनकी स्मृति में वह शिल्प बनाया गया था। विंदा करंदीकर को उस शिल्प में गणपति (जिनका त्योहार उल्लासपूर्वक महाराष्ट्र में मनाया जाता है) के दर्शन हुए

    चारों की साँसों की : विंदा करंदीकर के दो पुत्र, एक पुत्री और पत्नी

    बेटा की थेटा कीः विंदा की बेटी गणित लेकर बी.ए. कर रही थी, उसकी याद के संदर्भ में

    स्रोत :
    • पुस्तक : यह जनता अमर है (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : विंदा करंदीकर
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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