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मणिकर्णिका

manikarnika

निवेदिता झा

अन्य

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निवेदिता झा

मणिकर्णिका

निवेदिता झा

और अधिकनिवेदिता झा

    मरा हुआ आदमी

    ठहर जाता है वही कुछ दिन

    घटनाएँ अप्रत्याशित

    बहुत-सी मन को मोहनें वाली

    कभी दिल टूटनें लगता है

    और लगता है कभी वो यहीं ठहरे

    यात्रा ज़रूरी तो नहीं

    औरत नहीं जाती कहीं

    संबंधों को जोड़नें की पुरानी मान्यता

    और बिखरनें की ज़ल्दबाजी में ही उलझती रहती है

    उधर नया शरीर आत्मा के इंतज़ार में

    मोह के बंधन छूटते नहीं

    पढ गई थी चेहरा बालपन में ही

    अपनें शब्द के अस्तित्वहीन होने को

    मगर जिद्द थी कि बदल देगी वो सबके स्वभाव

    मृत्यु कठिन नहीं

    जीवन कठिन है

    क्यों चुना आपनें पृथ्वी पर जन्म

    और पुरूष-स्त्री का रूप

    क्यों ओढा संवेदनात्मक बोध

    ये प्रश्न उन कुछ दिनों में विमर्श हो जातें हैं

    जिसे मान्यताएँ और धर्म अपनें सुविधानुसार गुनते हैं

    मोक्ष अगर मणिकर्णिका में मिलती है तो...

    स्त्रियों के हिस्से बनारस भी आना चाहिए

    स्रोत :
    • रचनाकार : निवेदिता झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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