माँ ने जन्म दिया

man ne janm diya

मलय

मलय

माँ ने जन्म दिया

मलय

और अधिकमलय

    मैं अदना-सा आदमी

    मैंने पाया, इतना प्यार

    मैंने माँ की कथरी ओढ़कर

    ठंड के हिमालयों को

    झींगुर या कीड़ों की तरह रेंगते देखा

    सूपे की हवा ने उतार दिया

    गर्मियों का जलता बुखार

    अपनी स्मृतियों को फटकार कर पहनने से

    मेरे शरीर के रोएँ सब, एक-एक

    नोकदार काँटे हो आते हैं

    चुभते हैं ख़ुद को ही

    कई बार,

    अपनी ही भूख की

    हड्डियाँ चबाकर

    मौत को निगलकर जिया हूँ—

    अब, बार-बार विपत्ति की बहाली में

    छिलती-जलती चमड़ी

    और रिसते घावों की

    कराह से टन्नाती ताँत-सी

    धमनियों में उत्तेजित सारंगी-सी गुहार

    आख़िर मैं भी एक आदमी,

    अपने भाइयों की तरह

    एक जलता आकाश

    फिर बरसती मृत्यु का सामना करती हुई

    माँ ने जिसे जन्म दिया

    स्रोत :
    • रचनाकार : मलय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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