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मैंने अब तक अपनी वाटिका से नहीं कहा

mainne ab tak apni vatika se nahin kaha

अनुवाद : चंद्रबली सिंह

एमिली डिकिन्सन

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एमिली डिकिन्सन

मैंने अब तक अपनी वाटिका से नहीं कहा

एमिली डिकिन्सन

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    मैंने अब तक अपनी वाटिका से नहीं कहा—
    भय है कि कहीं पराजित न हो जाऊँ।
    मेरे पास अब पर्याप्त शक्ति नहीं रही,
    मधुमक्खी से यह बता पाऊँ—

    सड़क पर न इसका नाम मैं लूँगी
    क्योंकि दूकानें मेरी ओर घूरेंगी—
    कि कैसे जो इतनी शर्मीली, इतनी अबोध रही
    मरने का साहस बटोर पाई।
    पहाड़ी ढलानों को, जहाँ मैं—
    इतना घूमी—हरगिज़ न पता हो—
    और न अपनी विदा का दिन
    मुझे बताना है स्नेही जंगलों को—
    और न खाने की मेज़ पर होंठों पर लाना है—
    और न यूँ ही असावधानी से
    यह संकेत देना है कि आज
    किसी को पहेली में प्रवेश पाना है—

         
    स्रोत :
    • पुस्तक : एमिली डिकिन्सन की कविताएँ : संचयन (पृष्ठ 33)
    • रचनाकार : एमिली डिकिन्सन
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 2011

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