मैं यहाँ भी नहीं ठहरूँगी

main yahan bhi nahin thahrungi

रूपम मिश्र

रूपम मिश्र

मैं यहाँ भी नहीं ठहरूँगी

रूपम मिश्र

और अधिकरूपम मिश्र

    मैंने जन्म से देह की घृणा पी थी

    सबसे आदिम संबंध बहुत घिनौना है

    यह मिथ मुझे माँ के दूध में पिलाया गया है

    व्यर्थ श्रेष्ठताबोध मैं सिर पर लादकर चल रही थी

    पर मैं वहाँ भी नहीं ठहरी

    कई रोते चेहरे मुझे पुकारने लगे थे

    मैं उठकर वहाँ पहुँची थी

    बहुत दिन तक वहीं रही

    मैं सबसे अंत में तुमसे मिली

    फिर खो गई तुममें

    पर मुझे आशंका है :

    घृणा फिर से जन्म ले सकती है

    मैंने ढेरों हाथ हटाकर तुम्हारा हाथ पकड़ा था

    पर मुझे डर है तुम जब कभी प्रगाढ़ आलिंगन के लिए

    अपने हाथ बढ़ाओगे तो हो सकता है

    मुझमें रोपी गई वह देह-घृणा फिर जाग जाए

    और मैं झटक दूँ तुम्हारा हाथ

    तब तुम कहाँ जाओगे!

    मुझे नि:सत्व लगेंगी तुम्हारी बेहद ख़ूबसूरत आँखें

    भ्रम लगेंगे तुम्हारे वे होंठ जिन पर एक चिर प्रणय निवेदन रखा है

    जिन्हें जी भर देखने की मुझमें कभी क़ूवत हो पाई

    मुझे ग़लीज़ लगेंगी वे पवित्र रातें

    जब दो जोड़ी जागती आँखें

    बार-बार छलक पड़ती थीं

    पर धीरज रखना मैं वहाँ भी नहीं ठहरूँगी

    तुमसे छूटकर मैं प्रायश्चित के लिए किसी मंदिर के द्वार पर खड़ी हो जाऊँगी

    तुम आर्त्त होकर मुझे पुकारोगे

    मंदिर के घंटे-घड़ियाल में तुम्हारी आवाज़ नहीं सुनूँगी

    मैं संसार की सारी पवित्रता को देह में स्थापित कर दूँगी

    इस तरह मैं एक प्राकृतिक प्रेम की शीत हत्या कर दूँगी

    मैं किसी रोती हुई सीता या अग्निकुंड में जली सती से सतीत्व की भीख माँगूँगी

    या किसी सूर्य या इंद्र के पैर पकड़ूँगी मुझे याद नहीं रहेगा कुंती और अहल्या का दुःख

    मैं वहाँ भी बहुत दिन नहीं ठहरूँगी

    फिर किसी प्रार्थना-स्थल के गर्भ-गृह में कोई बच्ची चीख़ेगी

    प्रसाद और सिक्के उठाने के जुर्म में पुजारी किसी बच्चे को पीट देगा

    तब मैं वहाँ भी नहीं ठहरूँगी

    ख़ूब भटकूँगी

    ठोकर भी लगेगी

    अँधेरे से रास्ता दिखाई नहीं देगा

    तुम भी नहीं लौटोगे

    मैं कटी पतंग की तरह घूमूँगी!

    तभी कही दूर कोई भूखा बच्चा रोएगा

    वह मुझे पुकार सकता है

    अगर भी पुकारे तो भी मैं वही जाकर ठहरूँगी!

    मैं आस-पास बिखरी सारी किताबों को पढ़ डालूँगी

    फिर उसी रास्ते से मैं फिर तुम्हारे पास आऊँगी

    मैं तुम्हारे आँसुओं से तुम्हारा पता ढूँढ़ लूँगी

    क्योंकि तुम जब-जब रोए हो

    मुझे लगा कि कहीं औचक कोई दुलरुवा बच्चा घृणा की कड़ी निगाह से सहमकर रोया है

    तुम्हारी बहुत याद आने पर मैं उस बच्ची को जाकर गले लगा लेती हूँ

    जो एक दिन शहतूत के पेड़ को तेल-काजर लगाने की ज़िद कर रही थी!

    किसी अभिमंत्रित यंत्र की तरह मुझे तुम्हारा नाम रटने की लत लग गई है

    मैं तुम्हारे नाम के रंग से अपने कमरे की दीवारें रँगवा दूँगी

    चादरें और परदे भी उसी रंग के होंगे

    और इस तरह तुम्हारे नाम के आग़ोश में रहूँगी!

    तुम निश्चित मेरे प्रेमी हो!

    तुम्हारे अंकपाश में पहरों बेसुध रही हूँ!

    पर जो डर की यातना तुम्हें रात को सोने नहीं देती,

    उससे द्रवित होकर मेरे सीने में दूध-सा उतर आया था!

    मुझे अफ़सोस है मेरी जान!

    मैं इस मनुष्यहंता युग की आँखों में झाँककर करुणा भर सकी!

    स्रोत :
    • रचनाकार : रूपम मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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